उत्तम क्षमा
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज उत्तम क्षमा आज हम उत्तम क्षमा की साधना करेंगे और उत्तरोत्तर अपनी आत्मा को शुद्धता की ओर ले जाने का प्रयास करेंगे। ‘क्षमा वीरस्य भूषणं’ अर्थात् क्षमा वीरों का आभूषण है । यह कायरों का काम नहीं है। किसी को क्षमा करने के लिए एक उदार हृदय की आवश्यकता होती है। क्षमा का अर्थ है - क्रोध का अभाव। हमारी आत्मा का स्वभाव है - क्षमा, शांत भाव। आत्मा अपने स्वभाव में ही रहना चाहती है। यदि हमें क्रोध आ भी जाए तो वह 48 मिनट से अधिक नहीं रह सकता। यह एक तात्कालिक संवेग है जो थोड़े समय तक ही रहता है। कुछ समय बाद हम स्वयं ही सामान्य हो जाते हैं। इसका खतरनाक परिणाम तो तब हमारे सामने आता है जब यह वैर का रूप धारण कर लेता है और केवल इस जन्म में ही नहीं बल्कि अगले भवों तक भी हमारे परिणामों को शुद्ध नहीं होने देता। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है - कमठ का वैर जो उसने किसी जन्म में पार्श्वनाथ के जीव के साथ बांधा था। अतः सावधान हो जाओ और प्रत्येक जीव के प्रति क्षमा भाव धारण करो। क्रोध क्यों आता है ? जब हमारी अपेक्षा की उपेक्षा होती है तब हम उसे सहन नहीं कर पाते। हम अपने परिवा...