संत हरिद्वार हैं तो सत्संग गंगा-स्नान है

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

संत हरिद्वार हैं तो सत्संग गंगा-स्नान है

महानुभावों! गंगा में डुबकी लगाने का इतना ही अर्थ है कि गंगा जैसी पवित्रता हमारे जीवन में भी सदा बनी रहे। मुनि श्री कहते हैं कि संत सिद्धांत नहीं, अनुभव देता है; शास्त्र-ज्ञान नहीं, जीवन का सत्य देता है। संत-मुनियों से शास्त्रों के विषय में नहीं अपितु जीवन के विषय में पूछना चाहिए। संत जीवन में अनुभव बटोरते हैं और अमृत बाँटते हैं। संत इस जगत की प्राणप्रतिष्ठा हैं।

आगे मुनि श्री ने धर्मग्रंथों की बढ़ती उपेक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आजकल घरों में उपन्यास, अश्लील पत्रिकाओं को तो खूब संभाल कर रखा जाता है पर धर्मग्रंथों व उनके कटे-फटे पन्नों को संभालने की आवश्यकता नहीं समझी जाती। घर में जिनवाणी व संत-साहित्य अवश्य होना चाहिए क्योंकि संत-समागम सदा उपलब्ध नहीं होता। संत का संग ही सत्संग है।

जिस घर में जिनवाणी स्थापित होती है, उस घर में रहने वाले लोगों की मति कभी भ्रष्ट नहीं होती। मति भ्रष्ट होते ही जीवन में विपत्तियों व संकटों का जमाव होना आरम्भ हो जाता है। अगर प्रभु किसी को दंड देता है तो वह दंड सुनाने तुम्हारे घर नहीं आता बल्कि सबसे पहले तुम्हारी मति का हरण कर लेता है। मति भ्रष्ट होना ही सबसे बड़ा दंड है।

मुनि श्री कहते हैं कि जो मृत्यु के समय प्रभु का स्मरण करता है, वह ज्ञानी है। इसके विपरीत जो मृत्यु के समय प्रभु का नाम भूल जाता है, वह अज्ञानी है। अंतिम समय व्यक्ति को सभी से मोह हटाकर प्रभु से नाता जोड़ लेना चाहिए, जिससे मृत्यु सुधरने के साथ-साथ जीवन भी सुधर जाएगा। समय तो समय है जो अबाध गति से आगे बढ़ता चला जाता है। वह किसी के बाप का नौकर नहीं है जो आपके कहने से वहीं थम जाएगा। समय में समयसार निहित है। यह निस्तरण गतिशील है, वह सतत बह रहा है। उसे पकड़ना या लौटाना असंभव है। जैसे बहते हुए पानी को नहीं रोका जा सकता, वैसे ही गए हुए वक्त को पकड़ना नामुमकिन है। वक्त बहुत कमबख्त होता है इसीलिए यह मनुष्य की पकड़ से बाहर है।

अतः समय रहते संत के संग की गंगा में डुबकी लगा लो ताकि भवसागर से पार हो सको।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

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