तीर्थक्षेत्रों के दर्शन का महत्त्व

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

तीर्थक्षेत्रों के दर्शन का महत्त्व

तीर्थक्षेत्रों के दर्शन मात्र से पूर्वबद्ध पाप नष्ट हो जाते हैं।

महानुभावों! तीर्थक्षेत्रों के दर्शन मात्र से पूर्वबद्ध पाप वैसे ही नष्ट हो जाते हैं जैसे दीप के प्रज्ज्वलित होते ही अंधकार समाप्त हो जाता है। मुनि श्री कहते हैं कि वैसे तो संसार में हर क्षेत्र, हर स्थान समान है किंतु द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का प्रभाव एक स्थान को दूसरे स्थान से पृथक कर देता है क्योंकि हम नित्य देखते हैं कि द्रव्यगत विशेषता, क्षेत्रकृत प्रभाव और कालकृत परिवर्तन होता रहता है। केवल इतना ही नहीं, चारों ओर के वातावरण पर व्यक्ति के हर पल बदलते रहने वाले भावों और विचारों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है।

जिनकी आत्मा में विशुद्ध अथवा कतिपय शुद्ध भावों की स्फुरणा होती है, उनमें से शुभ तरंगें निकल कर वातावरण में व्याप्त हो जाती हैं। उस वातावरण में शुचिता, शांति, प्रसन्नता और निर्भयता का अनुभव होने लगता है। ये तरंगें वातावरण में जितनी दूर तक फैलती हैं, उतनी दूरी में रहने वाले प्राणियों पर भी अपना प्रभाव डालती हैं।

आगे मुनि श्री ने अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिस स्थान पर तपस्वी साधुओं के शुभ परमाणु विद्यमान होते हैं, उस स्थान पर आते ही जाति विरोधी जीवों के मन से भय और संहार की भावना भी तिरोहित हो जाती है। मुनि श्री ने स्थान का प्रभाव बताते हुए कहा कि आगम ग्रंथों में लिखा है, सम्मेद शिखर के 12 योजन 36 मील प्रमाण क्षेत्र में जन्म लेने वाली जीव राशि भी 48 जन्मों के बीज-कर्म नाश कर बंधन मुक्त हो जाती है।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

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