दुनिया में कोई अनाथ नहीं, सभी जगन्नाथ हैं
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
दुनिया में कोई अनाथ नहीं, सभी जगन्नाथ हैं
महानुभावों! यह हमारा भ्रम है कि दुनिया में हमें कोई ग़रीब दिखाई देता है और कोई अनाथ। इस दुनिया में कोई ग़रीब नहीं है। अध्यात्म-दृष्टि से सभी परम शक्ति सम्पन्न हैं। किसी को बेचारा मत कहो। यह तो परमात्मा का अपमान है। ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, रघुनाथ के देश में कोई अनाथ नहीं हो सकता। हर मनुष्य सम्राट है पर वह आत्म-सत्ता को भूल गया है। इसी कारण वह भिखारियों की तरह जी रहा है। आदमी को सम्राट बनने के लिए अपनी मौत को भुला देना चाहिए क्योंकि आत्मा कभी नहीं मरती।
तुमने जिसका उपकार किया है या करना चाहते हो, उसकी बुराइयों को भुला दो। उसकी बुराइयों पर ध्यान ही न दो। प्रभु जिसकी बाँह पकड़ लेता है, उसे फिर कभी नहीं छोड़ता। मनुष्य एक यंत्र की भांति है और प्रभु ही उसमें शक्ति भरता है। जयपुर में अगर तुम मूर्ति खरीदने जाओ तो भारी और बड़ी मूर्ति सस्ती मिलेगी तथा हल्की और छोटी मूर्ति की कीमत अधिक होगी। जानते हो क्यों? मूर्तिकार से इसका कारण पूछो तो वह कहता है कि मूल्य न तो मूर्ति का है और न ही इसमें प्रयोग किए गए पत्थर का। मूल्य तो इसकी शिल्पकला का है। इसी प्रकार मूल्य मंदिर का नहीं, उसमें प्रतिष्ठित मूर्तियों का है। मूल्य शरीर का नहीं, इसमें विराजमान आत्मा का है।
इस दुनिया में तीन प्रकार के जीव हैं। एक वे हैं जो स्वयं से पूछते हैं कि ‘मैं’ कौन हूँ, दूसरे वे हैं जो जानते हैं कि ‘मैं’ कौन हूँ। पहली प्रकार के जीव संसारी हैं और दूसरे संन्यासी। तीसरे वे हैं जो परमात्मा हैं। जीवन की मूल जिज्ञासा स्वयं (आत्मा) को जानने की है। जिसने निज को जान लिया, निज को पहचान लिया वही परमात्मा है, वही महावीर है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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