जीवन में गति है पर दिशा नहीं
जीवन में गति है पर दिशा नहीं (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) हम जीवन में सुबह से शाम तक दौड़ रहे हैं, लेकिन जाना कहाँ है, यह हमें मालूम नहीं है। हमारी यह दौड़ हमें कहीं नहीं पहुँचा पाती। जब तक हम अपनी दौड़ की दिशा को नहीं जानेंगे, तब तक हमारी दशा में भी परिवर्तन संभव नहीं है। दशा बदलनी है तो दिशा भी बदलनी होगी। हमें अपने जीवन को एक सही दिशा देनी होगी। जीवन का लक्ष्य निर्धारण करना होगा। स्वयं के बारे में सोचना होगा कि आखिर हम सब यह क्यों कर रहे हैं? हम किसी को दगा देना चाहते हैं या उसे सगा बनाना चाहते हैं। किसी को ऊपर उठाना चाहते हैं या नीचे गिराना चाहते हैं। किसी की निंदा करना चाहते हैं या उपासना करना चाहते हैं। किसी को आराध्य बनाना चाहते हैं या सेवक बनाना चाहते हैं। किसी के चरणों में अपना मस्तक झुकाना चाहते हैं या अपने चरणों में उसका मस्तक झुकाना चाहते हैं। हमारे जीवन का हेतु क्या है? हम यह सब क्यों करना चाहते हैं? इसे करने से क्या लाभ होगा? लक्ष्यहीन मानव भटकता रहता है। जैसे हवाएं अनंत आकाश में भटकती रहती हैं, बहती रहती हैं, किसी भी सुगंधित या दुर्गंधयुक्त पदार्थ...