हुकूमत

हुकूमत

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

हुकूमत का स्वाद उसी को नसीब होता है, जिसमें तप की अग्नि में जलने की हिम्मत होती है। हकीकत में हर आदमी सारी दुनिया पर हुकूमत करने की इच्छा रखता है लेकिन यह उसकी किस्मत है कि वह कितनी हुकूमत कर पाता है। कोई व्यक्ति होता है जो अपने घर पर ही नहीं, अपने पूरे खानदान पर हुकूमत करता है और कोई व्यक्ति अपने बच्चों पर भी हुकूमत नहीं चला पाता। यह गुण तो हमें अपने पुण्य के फल से प्राप्त होता है।

पाप के फल को सत्य की अवश्यकता नहीं है, लेकिन पुण्य के फल को प्राप्त करने के लिए हमें सत्य की गहराई से परिचित होना ही पड़ेगा, जो परम आवश्यक है। सत्य की गहराई हमें परमात्मा के चरणों में नसीब होती है। परमात्मा के सत्य रूपी सूर्य से ही हमें आत्मा में रोशनी उपलब्ध होती है। परमात्मा की परम ज्योति के प्रकाश से हम अपनी आत्मा का चिराग जला लें तो हमें भी हुकूमत नसीब हो सकती है।

मानव इस धरती पर ऐसा उत्कृष्ट प्राणी है जो सब ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है। मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो परमात्मा के सर्वगुण भी प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब मानव स्वयं ही अंधा हो जाए तो उसके सामने जलता हुआ दीया भी क्या लाभ दे सकता है? अंधे के सामने जलता हुआ दीया व्यर्थ है। ठीक ऐसे ही जो मानव बाहर के साधनों में उलझ कर मन का चैन खोजता है, वह बेचैन होकर संसार में ही खो जाता है। लेकिन जो स्वयं के अंदर परमात्मा को ढूंढता है, वह बेचैनी को दूर कर चैन को उपलब्ध होता है।

जो इंसान दुनिया की आग में नहीं, परमात्मा बनने के लिए तपस्या की आग में गिर कर जलने की हिम्मत रखता हो, सत्य का दीपक उसी के हृदय में जलता है। सर्वप्रथम सत्य जब भी उपलब्ध होता है तब धुंधला-धुंधला ही दिखाई देता है, लेकिन धीरे-धीरे उस पर नजर टिकाए रखने से वह धुंधलापन नष्ट हो जाता है और सत्य पूर्ण स्पष्ट होकर सामने आ जाता है। सत्य के स्पष्ट होते ही समग्र जीवन धारा, संसार पर हुकूमत की भावना अपने मन पर हुकूमत करने की तरफ स्वयमेव दौड़ पड़ती है और फिर एक दिन ऐसा आता है कि हमें पूर्ण ज्ञान, सम्पूर्ण जीवन की हुकूमत उपलब्ध हो जाती है। यही हर आदमी का अंतिम पड़ाव है। यही सफलता का अंतिम मुकाम है जिसे स्वाधीनता कहते हैं।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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