उत्साह और उमंग

उत्साह और उमंग

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

उत्साह और उमंग से मिलता है नया जीवन। नए जीवन की आस, नवजीवन की प्यास नई ज़िंदगी की सुवास। उत्साह और उमंग हर आदमी के जीवन में नई लहर लेकर आती है। यदि आज के काम में और अतीत के काम में कोई बदलाव नहीं आता, कोई नवीनता नहीं आती, तो हमारी जिंदगी में कुछ भी नया घटित नहीं होता। प्रभु का ध्यान जीवन में कुछ नया पाने के लिए और जीवन को नया बनाने के लिए ही किया जाता है। इससे हर नए दिन में एक नवीन आनन्द का संचार होता है। हर कार्य को नए ढंग से करने की उमंग जागृत होती है।

कार्य तो वही होता है जो असफल लोग भी करते हैं लेकिन सही कार्य करने पर भी उन्हें सफलता क्यों नहीं मिलती? वास्तव में सही कार्य करने से सफलता नहीं मिलती, अपितु सही ढंग से कार्य करने पर सफलता मिलती है। उमंग जीवन की वह तरंग है, जिससे रोम-रोम धर्म कार्य करने के लिए रोमांचित हो उठता है, पुलकित हो जाता है और उस कार्य को करने का उत्साह उसमें प्रोत्साहन देकर और भी शक्ति भर देता है। उत्साह के बिना उमंग अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाती और उमंग के बिना उत्साह असहाय होकर दिशाहीन हो जाता है। उमंग और उत्साह दोनों मिलकर ही जिंदगी को नया आयाम देते हैं।

हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण कीमती है। यदि हमारा प्रत्येक क्षण जीवन की खोज में लग जाए तो हमारा प्रत्येक क्षण अमूल्य हो जाएगा। जीवन यात्रा का सफर तय करना इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना जीवन को सही तरीके से जीना महत्वपूर्ण है।

जिंदगी तो राजा दशरथ ने भी व्यतीत की थी और भगवान राम ने भी की थी लेकिन जीवन जीने के ढंग का फर्क होने के कारण भगवान राम की जिंदगी आज भी हर आदमी के लिए आदर्श बनी हुई है और तब तक आदर्श बनी रहेगी जब तक कोई वैसा ही जीवन जी कर नहीं दिखा देता। भगवान महावीर, भगवान हनुमान और सीता माता आदि की जिंदगी असंख्य वर्षों के बाद आज भी आदर्श जिंदगी का आईना बनी हुई है। दुनिया के लोग उनके उस आदर्श को अपनाने के लिए ही प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर उनका स्मरण करते हैं। मात्र इसलिए कि हमारे अंदर भी वैसी ही उमंग और उत्साह की लहर पैदा हो और हम भी एक आदर्श जीवन की मिसाल बन सकें।

जीवन की सार्थकता खाने-पीने, धन-संपदा को एकत्रित करने, शादी करके बच्चों के साथ जीवन को गुज़ारने, मकान-दुकान बनाने, ख्याति-लाभ अर्जित करने अथवा भोग-विलास के विषयों में गुजारने में नहीं है, बल्कि परमात्मा के दर पर हमने स्वयं के अस्तित्व को पाने के लिए कितनी उमंग दिखाई है, अपने अन्दर कितना उत्साह पैदा किया है, इसमें ही जीवन की सार्थकता है। केवल तन की खातिर जीना तो नीच पुरुषों का काम है। केवल तन की सुरक्षा करते रहना जानवरों के स्तर का कार्य है, लेकिन अपने जीवन को उच्च शिखर तक ले जाने की खातिर जीना मनुष्यता का स्तर है। हमारे रोम-रोम में उमंग और उत्साह का टॉनिक होगा तो हमारे जीवन का आने वाला कल हमेशा सफल कहलाएगा एवं आज का दिन जिंदगी का सरताज होगा। हमारा जीवन उमंग और उत्साह से भरा रहे, तभी हमारा जीवन धन्य हो सकता है।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता