जिंदगी मजहब के लिए है मज़ाक के लिए नहीं
जिंदगी मजहब के लिए है मज़ाक के लिए नहीं
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
मज़ाक में जीवन गुजारना आसान है। मज़ाक-मज़ाक में ही जीवन की सारी उम्र समाप्त हो जाती है लेकिन मजहबी जिंदगी जीना बहुत मुश्किल है। दुनिया में लोग आते तो हैं जीने के लिए, लेकिन जीते हैं मरी हुई जिंदगी के समान, जिसमें न रौनक है, न खुशियाँ हैं, न कोई उल्लास नज़र आता है। सब लोग पशुओं की तरह भार जैसी जिंदगी जीते हैं। वे मजहबी जिंदगी नहीं जीते। मजहबी जिंदगी में हमेशा उत्सव है, ख़ुशी है, प्रसन्नता है, जागृति है। मजहबी जीवन फूलों जैसा खिला हुआ जीवन है और सूर्य के समान प्रकाशमान है।
जब जीवन में खुशियाँ नहीं होती, तो वह जिंदगी केवल एक मज़ाक बनकर रह जाती है। जिंदगी के साथ मज़ाक करना सरल है क्योंकि मज़ाक करना मूर्खता और अज्ञानता का ही प्रतीक है। संसार अज्ञानियों से भरा हुआ है। केवल एक ज्ञान है जो किसी अवतार से ही अवतरित होता है। यदि जमीन पर तीर्थंकरों के अवतार न हुए होते तो ज्ञान का प्रादुर्भाव कभी नहीं हो सकता था।
जिंदगी मज़ाक में जीने के लिए नहीं, मजहब की देहरी पर महकने के लिए है। जिंदगी हमारे लिए एक अमूल्य तोहफा है। दिन बिताना ही जिंदगी नहीं, सूरज को उगता और डूबता हुआ देखना ही जिंदगी नहीं, रोज-रोज खाना-पीना, कमाना, बच्चों का पालन-पोषण करना ही जिंदगी नहीं, ये तो शारीरिक स्तर के कार्य हैं। खाना-पीना शरीर को व्यवस्थित रखने के लिए है, बच्चों को पालना या उनकी देख-रेख में समय बिताना - यह दूसरों के स्तर की बातें हैं। सभी कार्यों में कर्तव्य नहीं बल्कि हमारी ग़लती पर मिली हुई सज़ा है। हमारे अपराध का प्रतिफल है।
हमारी जिंदगी जब वस्तु की चाहत की तरफ झुक जाती है, तब हमारी हर क्रिया में वही वस्तु नज़र आती है। फिर हमारी सारी ज़िंदगी मज़ाक का पुलिंदा बन जाती है। जिंदगी इंसान के स्तर से ऊपर उठने के लिए, परमात्मा बनने के लिए मिली है, इंसान तक सीमित रहने के लिए नहीं।
इंसान मजहब के स्तर की ऊँचाइयों पर चढ़ कर वह काम कर सकता है जिसे फरिश्ते भी नहीं कर सकते। यदि इंसान संत बनकर तपश्चरण करें तो फरिश्ते भी उसके ऊपर फूल बरसाने के लिए आ जाते हैं। फरिश्ते भी उसकी पूजा करके, उत्सव मना कर अपनी धार्मिकता को प्रकट करने लगते हैं। लेकिन जो जिंदगी के साथ महज मज़ाक करते हैं, उनकी सेवा में फरिश्तों की बात तो बहुत दूर है, पशु भी हर्ष नहीं मनाते।
अतः हम सभी अपनी जिंदगी को इतनी सुन्दर बनाएँ, जिसमें हमें भी आनन्द हो और दूसरों को भी आनन्द हो। हमारे रोम-रोम से खुशी उद्घाटित हो। रंजोगम, मायूसता और मातमी जिंदगी न हो, तभी जीवन फूलों के समान खिल कर दुनिया के बाग को महका सकता है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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