इंसानियत

इंसानियत

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

इंसानियत ही इंसान की मूल धरोहर है। यदि किसी इंसान में इंसानियत है, तभी वह इंसान कहलाने के योग्य है, अन्यथा उसे इंसान कहलाने का कोई हक नहीं है। हर इंसान के अंदर एक ख्वाहिश निरंतर पनप रही है और वह यह है कि सारी दुनिया मेरी मुट्ठी में हो जाए। मेरा अधिकार सारे विश्व पर हो जाए। सभी मेरी उंगलियों पर नृत्य करें। इस विचारधारा से अप्रत्यक्ष रूप में आदमी की कामना सब पर राज्य करने की दृष्टिगोचर होती है।

आज आदमी को अपनी वास्तविक धरोहर का तो पता नहीं, लेकिन सारे संसार की धरोहर को वह अपनी मान बैठा है। जिस कारण वह अपनी धरोहर को भूल चुका है। आज इंसान की कीमत वस्तु से आंकी जाती है, इंसानियत से नहीं और परमात्मा इंसान की कीमत इंसानियत से आंकता है, वस्तु से नहीं।

परमात्मा और इंसान के चिंतन में यह भेद होने के कारण आदमी चिंतित व परेशान नज़र आता है। वह सार तत्व को भूल चुका है। वह दूसरों पर अत्याचार करने में ही अपनी बहादुरी मानता है। मेरा विचार है कि इंसानियत के अभाव में आदमी का जीवन वैसा ही है, जैसे खुशबू के अभाव में फूल का, प्रकाश के अभाव में सूर्य का और सांस के अभाव में जीवन का होता है। अतः इंसानियत ही इंसान की वास्तविक धरोहर है।

मानव अपने स्वभाव व धर्म पर नजर डाले और उसे प्राप्त करने का उद्यम करे, तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन जाए और देव भी यहाँ उतर कर निवास करने लगें। यदि इंसानियत का बीज इंसान में अंकुरित हो जाए तो उसके मन में प्रेम, दया, विश्वास, सहानुभूति जैसे सद्गुण भरने लगें। ये सभी गुण मानव के स्वाभाविक गुण होने चाहिएं लेकिन विडंबना यह है कि मानव आज अपरिचित है तो मात्र अपने ही स्वभाव से। यदि उसके पास उसका स्वभाव आ जाए तो संसार की सारी दौलत-शोहरत सब कुछ अपने पास आ जाएगा। यश और मान-सम्मान इसी इंसानियत के स्वभाव के पीछे चलने वाली छाया है।

सत्य धर्म और सात्विक कामना के अभाव में हम ऐसी वस्तुओं को तो पा सकते हैं, जो मजदूरों को अपनी मजदूरी से प्राप्त होती है, लेकिन महानता, वैभव आदि हम कभी भी हासिल नहीं कर सकते। मानवता की नींव पर ही हमारे जीवन का महल खड़ा होता है। इंसानियत या मानवता इंसान की वह रीढ़ है जिसके बिना मानव समाज में बैठने योग्य भी नहीं हो पाता। हम संसार की समस्त वस्तुओं के मालिक बनकर भी उनके मालिक नहीं हो सकते, लेकिन यदि हम अपने मालिक बन जाएं तो हम सबके मालिक हो सकते हैं।

संसार इंसान को खुली चेतावनी दे रहा है कि जब कोई इंसान अपनी इंसानियत को प्रकट कर के दिखाता है तभी लोग उसकी पूजा-आराधना करने के लिए तैयार रहते हैं। दुनिया हमें यही बता रही है कि कोई दिल से सूरज के समान गुणों की रोशनी निकाल कर तो दिखाए, तभी उसे शोहरत के नज़ारे दिखाई देने लगेंगे। हम सभी को इंसानियत से इतना लगाव रखना चाहिए, इतना प्रेम करना चाहिए कि उसकी किरणें हमारे जीवन में प्रस्फुटित होकर हमारा जीवन उज्जवल करने लगें। तभी हमारा जीवन सबके लिए मंगलमय होता हुआ प्रशस्त हो सकता है।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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