जीवन की गाड़ी

जीवन की गाड़ी

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

जिस जीवन की गाड़ी में एक पहिया ट्रैक्टर का और एक पहिया साइकिल का हो, तो सोचो कि वह यात्रा कैसे चलेगी? पुण्य और पाप - ये जीवन को चलाने वाले दो तत्व हैं अर्थात् दो पहिए हैं। जीवन की गाड़ी इन्हीं दो पहियों से चलती है। मैं जानना चाहता हूँ कि जिस गाड़ी में एक पहिया ट्रैक्टर का हो और दूसरा पहिया साइकिल का हो तो वह गाड़ी कितने दिन चलेगी, कितनी तेज चलेगी और किस गति से चलेगी?

आज हमारे जीवन के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। हमारे जीवन का एक पहिया ट्रैक्टर का है, जिसका नाम है पाप और दूसरा पहिया साइकिल का है, जिसका नाम है पुण्य। हमारे पाप का पहिया बहुत बड़ा है और पुण्य का पहिया कमज़ोर है। अब क्या होगा? या तो पाप के पहिए को छोटा करना पड़ेगा, या पुण्य के पहिए को बड़ा करना पड़ेगा। ज़रूरत है पुण्य के पहिए को बड़ा करने की, ताकि जीवन की यात्रा सुखद व आनंदवर्धक हो सके। कहते हैं कि अच्छे खासे जीव की गाड़ी भी आज खटारा बन कर रह गई है, जिसमें हॉर्न के अलावा सब कुछ बजता है और पहिए के अलावा सब कुछ हिलता है।

आज का आदमी पाप को केवल बढ़ा ही नहीं रहा, बल्कि पाप को ही पुण्य समझ बैठा है। यही कारण है कि आज का आदमी पुण्य करना तो नहीं चाहता लेकिन उसके फल को पाना चाहता है और पाप को छोड़ना नहीं चाहता लेकिन उसके फल को पाना भी नहीं चाहता।

मित्रों! पुण्य से ही जीवन महकता है और खुशहाल बनता है। जीवन में पाप-पुण्य का संतुलन बनाना बहुत आवश्यक है। जिनेंद्र-पूजन, भक्ति, विधान, गुरुओं के सत्संग आदि से मिलने वाला पुण्य जीवन की गाड़ी को ठीक प्रकार से चलाने में सबसे बड़ा निमित्तकारण है।

अतः पुण्य बढ़ाएं और पाप को कम करने का प्रयत्न करें।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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