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Showing posts from October, 2023

आत्मनिंदा वंदनीय है, निंदनीय नहीं

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आत्मनिंदा वंदनीय है, निंदनीय नहीं (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) संसार में जिस बात को सुनकर आदमी भड़क उठे या घृणा कर उठे, वह है किसी के द्वारा की गई अपनी निंदा या आलोचना। वैसे किसी हद तक यह सुरक्षित कवच का भी काम करती है। आदमी अपनी निंदा और आलोचना के डर से ही कई बार लोक व्यवहार के विरुद्ध कार्य करने से बच जाता है कि लोग क्या कहेंगे? यद्यपि ग़लत कार्य के लिए दंड विधान की व्यवस्था भी है। यदि हम किसी का अपमान करते हैं तो हम पर अदालत में मानहानि का दावा भी हो सकता है और जातिसूचक शब्द तो किसी को कह ही नहीं सकते। केवल अनुसूचित जाति ही नहीं, यदि कोई हमारे धर्म का अपमान करने वाले शब्दों का भी प्रयोग करता है, तो वह एक बड़े आन्दोलन का रूप ले सकता है, लेकिन यह सब दूसरों के द्वारा की गई निंदा से ही घटित होता है। यदि हम स्वयं अपने ही अवगुणों की निंदा, गर्हा या आलोचना करें तो किसी भी अदालत में ऐसा कानून नहीं है कि हमें कोई दंड दे सके। अपनी निंदा करने से दुष्कर्मों की सजा मिलने के स्थान पर कम हो जाती है, बढ़ नहीं सकती। अपनी स्वयं की निंदा करने का मतलब है कि वह आत्मग्लानि से भरा ह...

बात पते की

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बात पते की (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) जिसे अपना पता हो वही पते की बात करता है। अपनी मंजिल का पता लगाना सरल नहीं है। शिवालय को खोजना उतना सरल नहीं है जितना शवालय को खोजना। किताबों को पढ़कर लक्ष्य का पता बताने से किसी को पथ का पता नहीं चल जाता। पथ को शब्दों से नहीं, संस्कार से ज्ञात किया जाता है। चाहे भगवान महावीर हो या भगवान राम हो या हनुमान हो, सभी ने लक्ष्य का पता, अपनी मंजिल का पता शब्दों की अभिव्यक्ति से नहीं, आचरण की प्रवृत्ति से बताया है। आचरण की अभिव्यक्ति व्यक्तित्व का प्रकटीकरण है। जिसने पूर्व में पढ़ने का अनुभव किया हो, वही दूसरों को पढ़ा सकता है। जिसने पूर्व में साइकिल चलाना नहीं सीखा, वह दूसरों को साइकिल चलाना नहीं सिखा सकता। जिसने स्वयं तैरना नहीं सीखा हो, वह दूसरों को तैरना नहीं सिखा सकता। ठीक वैसे ही जिसे स्वयं अपना ही पता नहीं है, वह वास्तविकता से ओतप्रोत मंजिल का पता कैसे बता सकता है? वैज्ञानिकों ने चांद पर जाने की तैयारी की, समुद्र में मकान बना लिए, आकाश में पक्षियों की तरह उड़ना सीख लिया, पानी में मछलियों की तरह तैरना सीख लिया, लेकिन वैज्ञानिक...

मन ही मन को ऊपर उठाता है

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मन ही मन को ऊपर उठाता है (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) हर आदमी यह कहते हुए पाया जाता है कि मैं अपने मन से बहुत दुःखी हूँ। थोड़ी देर के लिए भी मेरा मन स्थिर नहीं होता। ईश्वर की आराधना या मंत्रों का जाप करने बैठता हूँ, तो यह बंदर की तरह नहीं बल्कि उससे भी ज्यादा चंचल हो जाता है और मेरा मन भक्ति आदि से हट जाता है। लेकिन शायद उन्हें यह नहीं मालूम कि मन हमारे शरीर में हमेशा सक्रियता से चलने वाला एक बेशकीमती यंत्र है। इसके बिना हम सही और गलत दिशा का भी निश्चय नहीं कर पाते। कई लोग कहते हैं कि मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोई। यदि यह मन शांत हो जाए तो यह हमें महात्मा से मिलाता है और प्रशांत हो जाए तो परमात्मा का साक्षात्कार कराता है। यदि इस मन को तीव्र बुद्धि का आधार मिल जाए और हमारी सोच सकारात्मक हो जाए, तो यही मन मंत्र की सहायता से ऊपर उठने लगता है। मन जब मंत्रों का चिंतन करता हुआ ध्वनियुक्त या मौन रह कर जाप करता है, तब यह मन एकाग्र होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। लक्ष्य को पाने वाला मन ही ईश्वर बन जाता है और उत्तम लक्ष्य को पाने के लिए उद्यमशील मन ...

हमारा शरीर मोबाइल और मन मेमोरी कार्ड है

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हमारा शरीर मोबाइल और मन मेमोरी कार्ड है (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) क्या आप जानते हैं कि हमारे शरीर में बोलने की क्षमता, सुनने की क्षमता, जो सुना गया है उसे सेव करने की क्षमता और सुना हुआ न भूलने की क्षमता के साथ-साथ कई दिन तक स्मरण रखने की क्षमता होती है। ऐसी ही विशेषताओं को लेकर मोबाइल का यह प्रारूप तैयार किया गया है, जिसमें दिल बैटरी के समान है, बैटरी में विद्युत शक्ति हमारी आत्मा की शक्ति के समान है, मोबाइल के सुरक्षित रहने की क्षमता हमारी उम्र के समान है, कैमरा हमारी आँखों का प्रतीक है और मन मेमोरी कार्ड है। मन में हम संसार की गैरज़रूरी बातों को भी फीड कर सकते हैं और अच्छे धार्मिक गुणों को भी एड कर सकते हैं। मन को विषय भोगों में लगाकर दुःखी भी बना सकते हैं और धर्म में लगाकर सुखी भी बना सकते हैं। जैसे मोबाइल कई तरह के होते हैं, किसी में ज्यादा फंक्शन भी होते हैं जैसे 2जी, 3जी, 4जी, 5जी वगैरह। इसी तरह शरीर भी कई तरह के होते हैं। किसी की याददाश्त तेज़ होती है और किसी की कम होती है, तो किसी की होती ही नहीं। मोबाइल में अलग-अलग तरह का मेमोरी कार्ड होता है। मोबा...

अपने जैसे सबके प्राण

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अपने जैसे सबके प्राण (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) मगध देश की राजगृही नगरी के राजा श्रेणिक एक बार सभा में बैठे थे। सभी मंत्री, सामन्त इत्यादि यथा स्थान बैठे हुए थे। बातचीत के दौरान जो मांस-प्रेमी सामंत थे, वे बोले कि आजकल मांस सस्ता है और अनाज महंगा है। यह बात राजकुमार अभय कुमार ने सुनी तो उन्हें अच्छी नहीं लगी और वे मन ही मन में बेहद दुःखी हुए। उन्होंने सामंतों को बोध देने का निश्चय किया। सांयकाल सभा विसर्जित हुई। अभय कुमार तैयार होकर जिस-जिस ने मांस के सस्ते होने की बात कही थी, उस-उस सामंत के घर गया। सबने अपने घर पर उसका स्वागत किया और आवभगत करने के बाद उनसे पूछा कि आप किसलिए परिभ्रमण करके मेरे घर पधारे हैं। अभय कुमार ने कहा कि महाराज श्रेणिक को अकस्मात महारोग उत्पन्न हुआ है। वैद्यों को बुलाया गया तो उन्होंने उपाय बताया है कि मनुष्य के कोमल कलेजे का सवा पैसे के बराबर मांस मिल जाए, तो यह रोग मिट सकता है। आप राजा के भक्त हैं, इसलिए आप से मैं थोड़ा-सा मांस लेने आया हूँ। सामंतों ने विचार किया कि हम मरे बिना कलेजे का मांस कैसे दे सकते हैं? इसके लिए तो हमें मरना पड़...

परमात्मा सस्ती चीज नहीं है

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परमात्मा सस्ती चीज नहीं है (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) परमात्मा किसे कहते हैं? जो 8 कर्मों से मुक्त हैं, जो मोक्ष निकेतन अर्थात् सिद्धालय में निवास करते हैं तथा जो सम्यक्त्व आदि 8 गुणों से युक्त हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं। उन्हें हम प्रतिदिन नमस्कार करते हैं। संसार में जो अष्ट कर्मों का नाश करता है, वह संसार से ऊपर उठकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त होता है। ‘परिवर्तन ही संसार का नियम है।’ संसरति इति संसारः। संसार वह है जिसमें सदा परिवर्तन होता रहता है। सृष्टि का और मानव जाति का उतार-चढ़ाव अनादि काल से चला आ रहा है। हमारी आत्मा ऐसी विनश्वर सृष्टि के संसार रूपी अरण्य में मृग के समान अनादिकाल से भटक रही है। जैसे शिकारी मृग को चारों ओर से बंदी बनाने के लिए हर समय तैयार रहता है, वैसे ही आदमी संसार में चारों ओर से कर्म रूपी शिकारियों से ऐसा घिरा हुआ है कि उसे कहीं से कोई निकलने की जगह नहीं मिलती। जो व्यक्ति अपने आप को धर्म के हाथों में सौंप देता है, उसी की सुरक्षा के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। भगवान तो हर जगह विद्यमान है, परन्तु आज के पापी और लुटेरे लोगों को मात्र मंदि...

ऐसा था महावीर का आदर्श

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ऐसा था महावीर का आदर्श (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) महावीर का जन्म - माता त्रिशला का राजमहल! प्रातःकाल का समय था। सूरज की किरणें धरती को आलोकित कर रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारी धरती स्वर्ग बन गई हो। सभी के चेहरों पर खुशी थी। देवों का भी आवागमन चल रहा था और उसी वक्त त्रिशला माता ने एक अद्भुत बालक को जन्म दिया, जो तीन लोक के नाथ बनने आया था, जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह जैसे पापों को नष्ट करने आया था, जो अहिंसा और सत्य का बिगुल बजाकर लोगों को संसार रूपी सागर से पार लगाने आया था। बालक के जन्म के साथ ही समाज की, देश की समृद्धि और यश बढ़ने लगा। पिछले 15 मास से रत्नों की वर्षा हो रही थी। महावीर जब गर्भ में भी नहीं आए थे, उससे 6 महीने पहले से लेकर गर्भ काल के 9 महीने तक लगातार कुबेर रत्नों की वर्षा करता रहा। इस अद्भुत आश्चर्य का इतिहास साक्षी है कि महापुरुषों के पुण्य उदय के कारण उनके जन्म से ही सभी को शांति की अनुभूति होती है। ये सब आश्चर्य देखकर राजा सिद्धार्थ ने अपने बालक का नाम वर्धमान रखा। वर्धमान के जन्म के बाद उसके साहस, दयालुता और करुणा को दे...

आप से आपका भाग्य रूठे लेकिन भगवान नहीं

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आप से आपका भाग्य रूठे लेकिन भगवान नहीं (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) व्यक्ति को जीवन में अपने भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए दान और पूजा अवश्य करनी चाहिए। धन तो सबके पास होता है लेकिन उसका सदुपयोग करना कोई सौभाग्यशाली ही जान सकता है। रावण के पास भी धन था, ऐश्वर्य था और भरत चक्रवर्ती के पास भी छ: खण्ड का राज्य था, लेकिन रावण ने अपने धन से सोने की लंका बनवा दी और भरत चक्रवर्ती ने कैलाश पर्वत पर सोने के 72 जिनालय बनवा दिए क्योंकि जीवन में ऐसा पुण्यकर्म हर किसी के भाग्य में नहीं होता। कभी तीनों चीजें एक साथ, एक समय में नहीं रहती - पैसा, पुण्य और भाग्य। ये तीनों कभी भी छूट कर जा सकते हैं। धन की देवी लक्ष्मी सदैव खड़ी दिखाई देती है और विद्या की देवी सरस्वती हमेशा बैठी रहती है। लक्ष्मी संकेत देती है कि जिस दिन व्यक्ति का पुण्य खत्म हो जाएगा, उस दिन वह भी उसे दो लात मार कर चली जाएगी। इसलिए जीवन में सदा पुण्य का कार्य करते रहना चाहिए, दान-पूजा करते रहना चाहिए। जीवन में आपसे आपका पुण्य रूठ जाए तो पुनः कमाया जा सकता है, आपके रिश्तेदार रूठ जाएं तो उन्हें मनाया जा सकता...

आत्म कल्याण

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आत्म कल्याण (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) हमारी आत्मा का कल्याण तभी संभव है, जब हमें उन निमित्तों के बारे में ज्ञान हो जिन से आत्मा का घात होता है और जिन निमित्तों से कर्म का बंध होता है। वे सारे के सारे निमित्त आत्म घात के हेतु होने से हिंसक माने जाते हैं। केवल इन निमित्तों का द्रव्य-सेवन करने से ही कर्मों का बंध नहीं होता अपितु भावों द्वारा उन द्रव्य के पास पहुंचने से भी बंध हो जाता है। जिस प्रकार टंकी में जैसा पानी भरा होगा, वैसा ही नल में से पानी आएगा। यह नल का दोष नहीं है कि वह गंदा पानी दे रहा है। गंदा पानी टंकी में भरेगा तो गंदा पानी ही बाहर आएगा। न यह पानी का दोष है, क्योंकि वह पानी भी तो हमने ही भरा था। इसी प्रकार हम जैसे कर्म करेंगे वैसे ही कर्मों का आत्मा के साथ बंध होगा और वे ही समयानुसार उदय में आएंगे। हम दूसरों को दोष क्यों दें? इससे तो बेहतर है कि हम अपने परिणामों को निर्मल बनाएँ। जब तक परिणति निर्मल नहीं बनेगी, तब तक आपकी आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता और आपको मोक्ष नहीं मिल सकता। भगवान आपको मोक्ष नहीं दिला सकता। हमें भगवान का अवलंबन लेना होगा, ...

अपने से नीचे वाले को देखें

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अपने से नीचे वाले को देखें (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) यदि हम जीवन को पावन-पुनीत बनाना चाहते हैं, सुखी बनाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण, अपने सोच-विचार को बदलना होगा और पुरानी रूढ़िवादिता में न चल कर आज के सोच के हिसाब से चलना होगा। तभी हम अपने आपको, अपने जीवन को पावन बना सकते हैं। हमें सदा स्वयं को प्राप्त हुए सुख को देखना चाहिए लेकिन हम दूसरे के सुख को देख कर दुखी होते रहते हैं। हमें यदि सुखी होना है तो हमें सदा अपने से नीचे स्तर पर रहने वाले लोगों को देखना प्रारंभ कर देना चाहिए, तो जीवन में कभी भी दुःख नहीं आ सकता। हम सुख का साधन केवल बाह्य वस्तुओं को ही मानते हैं। हम यही सोच कर दुःखी होते रहते हैं कि हमारा पड़ोसी इतना सुखी क्यों है? हर व्यक्ति अपने पुण्य से कमा रहा है और सुख भोग रहा है। हम भी अपने पुण्य-पाप से जैसा कमाएंगे, वैसा ही सुख मिलेगा। अतः यदि अपने जीवन में खुश रहना है तो अपने से नीचे वाले को देखना आरंभ कर दो, जो कम संसाधनों में भी कितना सुखी है। व्यक्ति के जीवन में यदि कुछ साथ जाने वाला है तो उसका पुण्य-पाप ही है। जो कमाया है, वही साथ जाएगा। इसल...