ऐसा था महावीर का आदर्श

ऐसा था महावीर का आदर्श

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

महावीर का जन्म - माता त्रिशला का राजमहल! प्रातःकाल का समय था। सूरज की किरणें धरती को आलोकित कर रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारी धरती स्वर्ग बन गई हो। सभी के चेहरों पर खुशी थी। देवों का भी आवागमन चल रहा था और उसी वक्त त्रिशला माता ने एक अद्भुत बालक को जन्म दिया, जो तीन लोक के नाथ बनने आया था, जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह जैसे पापों को नष्ट करने आया था, जो अहिंसा और सत्य का बिगुल बजाकर लोगों को संसार रूपी सागर से पार लगाने आया था।

बालक के जन्म के साथ ही समाज की, देश की समृद्धि और यश बढ़ने लगा। पिछले 15 मास से रत्नों की वर्षा हो रही थी। महावीर जब गर्भ में भी नहीं आए थे, उससे 6 महीने पहले से लेकर गर्भ काल के 9 महीने तक लगातार कुबेर रत्नों की वर्षा करता रहा। इस अद्भुत आश्चर्य का इतिहास साक्षी है कि महापुरुषों के पुण्य उदय के कारण उनके जन्म से ही सभी को शांति की अनुभूति होती है। ये सब आश्चर्य देखकर राजा सिद्धार्थ ने अपने बालक का नाम वर्धमान रखा।

वर्धमान के जन्म के बाद उसके साहस, दयालुता और करुणा को देखकर उन्हें अतिवीर, सन्मति आदि नामों से भी पुकारा गया। कहा जाता है कि एक बार बालक वर्धमान अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे। तब एक देव पृथ्वी लोक पर एक विषधारी सर्प का रूप बनाकर बालक की परीक्षा करने आया। सभी मित्र भय के कारण भागने लगे, लेकिन बालक वर्धमान सिंह की तरह निडर होकर वहीं खड़े रहे। तब देव ने अपने असली रूप में आकर बालक को प्रणाम करते हुए कहा कि आप वीर, अतिवीर, सन्मति ही नहीं; आप तो महावीर हैं। तभी से वर्धमान का नाम महावीर पड़ गया।

जब बालक महावीर को उनके गुरु भी पढ़ाने में असफल रहे तो उन्होंने कहा कि जिसने आत्मा को जान लिया है उसे और क्या जानने की आवश्यकता है। बालक महावीर तो तीनों लोकों के जीवों को जीवन का पाठ पढ़ाने आए हैं।

ऐसे थे भगवान महावीर और उनका आदर्श!!

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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