अपने जैसे सबके प्राण
अपने जैसे सबके प्राण
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
मगध देश की राजगृही नगरी के राजा श्रेणिक एक बार सभा में बैठे थे। सभी मंत्री, सामन्त इत्यादि यथा स्थान बैठे हुए थे। बातचीत के दौरान जो मांस-प्रेमी सामंत थे, वे बोले कि आजकल मांस सस्ता है और अनाज महंगा है। यह बात राजकुमार अभय कुमार ने सुनी तो उन्हें अच्छी नहीं लगी और वे मन ही मन में बेहद दुःखी हुए। उन्होंने सामंतों को बोध देने का निश्चय किया।
सांयकाल सभा विसर्जित हुई। अभय कुमार तैयार होकर जिस-जिस ने मांस के सस्ते होने की बात कही थी, उस-उस सामंत के घर गया। सबने अपने घर पर उसका स्वागत किया और आवभगत करने के बाद उनसे पूछा कि आप किसलिए परिभ्रमण करके मेरे घर पधारे हैं। अभय कुमार ने कहा कि महाराज श्रेणिक को अकस्मात महारोग उत्पन्न हुआ है। वैद्यों को बुलाया गया तो उन्होंने उपाय बताया है कि मनुष्य के कोमल कलेजे का सवा पैसे के बराबर मांस मिल जाए, तो यह रोग मिट सकता है। आप राजा के भक्त हैं, इसलिए आप से मैं थोड़ा-सा मांस लेने आया हूँ। सामंतों ने विचार किया कि हम मरे बिना कलेजे का मांस कैसे दे सकते हैं? इसके लिए तो हमें मरना पड़ेगा।
ऐसा कहने के बाद उन्होंने अपनी बात राजा के आगे प्रकट न करने के लिए अभय कुमार को बहुत-सा द्रव्य दिया। इसी प्रकार प्रत्येक सामंत मांस के स्थान पर द्रव्य देता गया और अभय कुमार वह द्रव्य इकट्ठा करता गया। अभय कुमार सभी सामंतों के घर गया लेकिन कोई भी मांस देने को तैयार नहीं था, अपितु अपनी बात छुपाने के लिए बहुत-सा द्रव्य देने को तैयार हो गए थे।
दूसरे दिन दरबार में सभी सामंत अपने-अपने आसन पर आकर बैठ गए। राजा भी सिंहासन पर विराजमान थे। सामंत आकर राजा से उनकी कुशलक्षेम पूछने लगे। राजा उनका प्रश्न सुनकर विस्मित हुए। तब सभी ने अभय कुमार की ओर देखा। अभय कुमार बोला - महाराज कल आपके सामंतों ने सभा में कहा था कि आजकल मांस सस्ता मिलता है। इसलिए मैं उनके यहाँ सवा पैसे के बराबर मांस लेने गया था लेकिन किसी ने भी कलेजे का सवा पैसे के बराबर भी मांस नहीं दिया। तो आप ही बताएं कि मांस सस्ता हुआ या महंगा।
यह सुनकर सब सामंत नीचे की ओर दृष्टि करके देखने लगे। कोई कुछ भी न बोल सका। तब अभय कुमार ने कहा - यह मैंने आपको दुःखी करने के लिए नहीं किया, मैंने तो केवल बोध देने के लिए किया है। यदि हमें अपने शरीर का मांस काट कर किसी को देना पड़े तो हमें कितना दुःख होता है क्योंकि हमें अपनी देह प्यारी है। इसी प्रकार सभी जीवों को अपना जीवन प्यारा होता है। जैसे हम अमूल्य वस्तु देकर भी अपनी देह को बचाते हैं, वैसे ही हमें उन मूक प्राणियों का जीवन भी बचाना चाहिए। हम बुद्धिमान हैं, अच्छे-बुरे की समझ रखते हैं, मुँह से बोल कर अपना दुःख कह सकते हैं, लेकिन वे बेचारे पशु मूक और नासमझ हैं। उनके प्राणों का वध करना भयंकर पाप का कार्य है। हमें इस वचन को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि सब प्राणियों को अपना जीवन प्यारा होता है। उनके प्राणों की रक्षा करने के समान अन्य कोई धर्म नहीं है।
अभय कुमार के कथन से श्रेणिक महाराज संतुष्ट हुए। सभी सामंत भी प्रतिज्ञाबद्ध हुए कि आज से हम मांस न खाने का वचन देते हैं। सभी को ऐसा ही विचार रखना चाहिए और मांस का त्याग करके अहिंसा धर्म का प्रचार करना चाहिए।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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