परमात्मा सस्ती चीज नहीं है
परमात्मा सस्ती चीज नहीं है
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
परमात्मा किसे कहते हैं? जो 8 कर्मों से मुक्त हैं, जो मोक्ष निकेतन अर्थात् सिद्धालय में निवास करते हैं तथा जो सम्यक्त्व आदि 8 गुणों से युक्त हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं। उन्हें हम प्रतिदिन नमस्कार करते हैं। संसार में जो अष्ट कर्मों का नाश करता है, वह संसार से ऊपर उठकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त होता है।
‘परिवर्तन ही संसार का नियम है।’ संसरति इति संसारः। संसार वह है जिसमें सदा परिवर्तन होता रहता है। सृष्टि का और मानव जाति का उतार-चढ़ाव अनादि काल से चला आ रहा है।
हमारी आत्मा ऐसी विनश्वर सृष्टि के संसार रूपी अरण्य में मृग के समान अनादिकाल से भटक रही है। जैसे शिकारी मृग को चारों ओर से बंदी बनाने के लिए हर समय तैयार रहता है, वैसे ही आदमी संसार में चारों ओर से कर्म रूपी शिकारियों से ऐसा घिरा हुआ है कि उसे कहीं से कोई निकलने की जगह नहीं मिलती। जो व्यक्ति अपने आप को धर्म के हाथों में सौंप देता है, उसी की सुरक्षा के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
भगवान तो हर जगह विद्यमान है, परन्तु आज के पापी और लुटेरे लोगों को मात्र मंदिर में ही भगवान दिखते हैं। इसलिए वे सूने घरों में या भरे हुए घरों में या रास्तों पर पाप करने से नहीं डरते और अब तो मंदिर भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं, जहाँ चोर अपना हाथ साफ करने से बाज नहीं आते। ध्यान रखना कि पापी दो आँखों वाले से छिपकर पाप कर सकता है किंतु हज़ारों नेत्र धारण करने वाले अदृश्य परमात्मा से बचकर वह कहीं नहीं जा सकता।
भगवान के सामने चार दाने चावल के चढ़ाने से या अगरबत्ती जलाने से और नारियल फोड़ने से यदि भगवान मिल जाए तो फिर वे भी सस्ते हो जाएंगे किंतु परमात्मा इतनी सस्ती चीज़ नहीं है। जब तक हम अपने मन में आई हुई विकृतियों को दूर नहीं करते, तब तक हम सिद्धि की प्राप्ति नहीं कर सकते। जैसे यदि बीज को ही नष्ट कर दें तो वृक्ष कैसे बनेगा? बस इसी प्रकार जब तक हम संसार को बनाने वाले और बढ़ाने वाले कर्मों का नाश नहीं कर देते, तब तक संसारभ्रमण का नाश नहीं हो सकता। बस! उसके लिए त्याग-तपस्या के रूप में मोल चुकाना होगा, क्योंकि परमात्मा इतनी सस्ती चीज नहीं है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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