बात पते की
बात पते की
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
जिसे अपना पता हो वही पते की बात करता है।
अपनी मंजिल का पता लगाना सरल नहीं है। शिवालय को खोजना उतना सरल नहीं है जितना शवालय को खोजना। किताबों को पढ़कर लक्ष्य का पता बताने से किसी को पथ का पता नहीं चल जाता। पथ को शब्दों से नहीं, संस्कार से ज्ञात किया जाता है। चाहे भगवान महावीर हो या भगवान राम हो या हनुमान हो, सभी ने लक्ष्य का पता, अपनी मंजिल का पता शब्दों की अभिव्यक्ति से नहीं, आचरण की प्रवृत्ति से बताया है। आचरण की अभिव्यक्ति व्यक्तित्व का प्रकटीकरण है।
जिसने पूर्व में पढ़ने का अनुभव किया हो, वही दूसरों को पढ़ा सकता है। जिसने पूर्व में साइकिल चलाना नहीं सीखा, वह दूसरों को साइकिल चलाना नहीं सिखा सकता। जिसने स्वयं तैरना नहीं सीखा हो, वह दूसरों को तैरना नहीं सिखा सकता। ठीक वैसे ही जिसे स्वयं अपना ही पता नहीं है, वह वास्तविकता से ओतप्रोत मंजिल का पता कैसे बता सकता है?
वैज्ञानिकों ने चांद पर जाने की तैयारी की, समुद्र में मकान बना लिए, आकाश में पक्षियों की तरह उड़ना सीख लिया, पानी में मछलियों की तरह तैरना सीख लिया, लेकिन वैज्ञानिक लोग स्वयं से, अपनी ज्ञान-चेतना से अभी तक अनभिज्ञ हैं, जिस ज्ञान के सहारे वे ये सब आविष्कार कर पाए। सब को जानकर भी यदि स्वयं को नहीं जाना तो कुछ भी नहीं जाना और जिसने स्वयं को जान लिया, उसने सबको जान लिया।
ऐसा व्यक्ति ही अपने सूक्ष्म मन की बात को पकड़ सकता है। वह दूसरों के मन की बात को भी समझ सकता है। शास्त्रों का सार निकाला जाए या संतों के प्रवचनों का सार निकाला जाए तो वह एक ही निकलेगा कि स्वयं को जानने का प्रयास करो, तो तुम तीनों लोकों की सभी पर्यायों को जानने की शक्ति प्राप्त कर सकते हो।
हमारी जेब में जो होता है, हम सब को वही लौटा सकते हैं। यदि हमारे पास नमकीन वस्तुएं रखी हैं, तो हम उससे किसी का मुंह मीठा नहीं करवा सकते। परमात्मा के स्वरूप को बताने के लिए हमें सर्वप्रथम परमात्मा को आत्मसात् करना पड़ेगा। स्वयं के प्रति साक्षी बनेंगे तो परमात्मा स्वयं ही हृदय में प्रकट होगा। परमात्मा बन कर सिद्धालय में निवास करना ही अपनी अंतिम मंजिल है। उसका पता केवल स्वयं को जानकर ही हो सकता है। स्वयं को जानने वाला स्वयंभू बनता है एवं दूसरों को स्वयंभू होने का पथ बता सकता है। हम सभी प्रयत्न करके स्वयं को जानें, तभी जीवन की सार्थकता नज़र आ सकती है। यही जीवन की सफलता है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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