आत्मा ही सत्य है
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज आत्मा ही सत्य है हाँ, हमारी आत्मा ही सत्य है, शाश्वत् है। यह इस जन्म से पहले भी थी, मृत्यु के बाद भी रहेगी। यह संसारी अवस्था में भी हमारे साथ रहेगी और मुक्ति पाने के बाद भी। इसलिए सबसे पहले तो सत्य का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। अभी तक हम झूठ को ही जीवन मान कर अपना जीवन जी रहे हैं। इसका मतलब है कि हम मोहनिद्रा में लीन हैं। ‘मोह नींद के जोर, जगवासी घूमे सदा।’ मान लो हम नींद में सो रहे हैं। सपना देख रहे हैं कि हमारा आलीशान महल है, धन-संपत्ति है, नौकर, चाकर, पत्नी, बच्चे आगे-पीछे घूम रहे हैं। तभी हमने देखा कि महल को आग लग गई और सब कुछ समाप्त हो गया। हम रोने लगे और सचमुच ही आँखों से आँसू निकलने लगे। किसी ने हमें जगाया तो पता चला कि वहाँ तो कुछ भी नहीं था। अरे! यह तो सपना था, वह सब झूठ था। इसलिए सत्य का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। सत्य का ज्ञान होते ही दुःख, द्वन्द्व, दुविधा सब समाप्त हो गए। महल, नौकर, चाकर, आग की लपटें आदि सब अदृश्य हो गए। पर मुश्किल यह है कि आप असत्य पर ही श्रद्धा करते हो। यह मेरा घोड़ा है और यह मेरी गाड़ी है, लेकिन जा...