सत्संगति से जीवन बनता है स्वर्ग
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
सत्संगति से जीवन बनता है स्वर्ग
सत्संगति एक ऐसा पारस पत्थर है जो नर को नारायण और पापी को परमात्मा बना सकता है। बस! शर्त यह है कि नर में नारायण बनने की और पापी में परमात्मा बनने की पात्रता हो। पारस पत्थर भी उस लोहे को स्वर्ण में परिवर्तित करता है जो जंग से रहित हो।
एक आदमी जैसी संगति करता है, उस पर संगति का प्रभाव पड़ने लगता है और वह भी धीरे-धीरे उसी रूप में ढल जाता है।
स्वाति नक्षत्र में आसमान से गिरी पानी की बूंद में यह विशेषता होती है कि उसे जिसका संयोग मिलता है, उसका उसी रूप में परिवर्तन हो जाता है। यदि वह बूंद गन्ने के ऊपर गिरती है तो उसमें भी गन्ने जैसी मिठास उत्पन्न हो जाती है। इसके विपरीत यदि वही बूंद साँप के मुख में जाकर गिरती है तो विष का रूप धारण कर लेती है।
एक ओर जहाँ गन्ने की मिठास सबको प्रसन्न करती है, वहीं दूसरी ओर सर्प का विष अच्छे-भले हंसते-खेलते प्राणी को मौत के मुंह में सुला देता है।
स्वाति नक्षत्र में गिरी पानी की बूंद में तो कोई अन्तर नहीं था, फिर उसके गुणों में यह अन्तर आया कहाँ से?
हाँ, आपने ठीक कहा। यह अन्तर आया संगति के प्रभाव से। गन्ने के पोर-पोर में मिठास भरी होती है, इसलिए वह अपनी संगति में आई हर वस्तु को भी मिठास से भर देता है। सांप के रोम-रोम में विष भरा होता है, इसलिए वह अपनी संगति में आई हर वस्तु को विष में परिवर्तित कर देता है। सांप को यदि मीठा दूध भी पिलाया जाए तो वह उसे भी ज़हरीले विष में बदल देता है।
इसलिए सज्जन बनने के लिए सज्जन की संगति ही लाभकारी सिद्ध हो सकती है। यदि हम सच्चे मन से, पूर्ण श्रद्धा व निष्ठा से साधु की संगति करते हैं तो हमें भी मोक्ष का मार्ग मिल सकता है क्योंकि वे स्वयं भी इसी मार्ग पर चल रहे हैं और हम पर भी उनकी सत्संगति का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा।
“सत्संगति कथय किम् न करोति पुंसाम्।”
कहो कि सत्संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं कर सकती?
हमारे जीवन का नियन्त्रण किसी सदगुरु के हाथ में होना चाहिए। उसके बाद ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है जिसे हम प्राप्त न कर सकें। तभी हम अपने जीवन को स्वर्ग से भी सुन्दर बना सकेंगे।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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