जीवन का लक्ष्य
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
जीवन का लक्ष्य
जन्म मिला, जीवन मिला तो इस जीवन का लक्ष्य भी निर्धारित करो कि हम कैसे जीएं? हमारा उद्देश्य क्या है?
हम इस दुनिया में क्या करने आए हैं? यह जिज्ञासा हरेक के मन में होनी चाहिए।
क्या मात्र भोग-सामग्री को एकत्रित करने और उसका उपभोग करने के लिए ही हम पैदा हुए हैं? जीवन भर खाया-पीया, चारों कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) का पोषण करके द्रव्य कमाया और उसका भोग करके सो गए। अगले दिन फिर इन्हीं क्रियाओं में लग गए।
एक दिन इसी प्रकार जीवन का अन्त हो जाएगा और आप चिरनिद्रा में सो जाओगे।
क्या इसे ही व्यवस्थित जीवन कहते हैं?
एक बच्चा भी 9वीं-10वीं कक्षा में अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है और फिर उसे प्राप्त करने में जुट जाता है। क्या लक्ष्य बनाते ही उसे लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है? नहीं न!
डॉक्टर बनना है तो उसे 10 साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, रोज़ 15-18 घंटे तक पढ़ाई करने के बाद ही वह अपने लक्ष्य को पा सकेगा।
जब मैं 14 वर्ष का था तब मैंने अपने गुरुवर के मुख से ये दो लाइनें सुनी थी -
नई खूबी, नई रंगत, नए अरमान पैदा कर,
इस खाक के पुतले में तू, भगवान पैदा कर।
बस! मुझे अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया कि यह मेरा शरीर इक खाक का पुतला है जो चिता की अग्नि में जलकर भस्म हो जाएगा। अस्थियाँ बिखरने से पहले आस्था जगा ली कि मुझे तो इस खाक के पुतले में भगवान को पैदा करना है। सभी के माता-पिता चाहते हैं कि मेरा बेटा डॉक्टर बने।
हाँ, मैने भी डॉक्टर बनने की ठान ली पर शरीर का नहीं, आत्मा का।
आत्मा को कर्म-बन्धन से मुक्त करने की दवा खोजने चल पड़ा और उसी का परिणाम है कि आज मैं आप सब के बीच में मुनि विरंजन सागर बन कर बैठा हूँ।
गुरु ने कहा कि बेटा! यह इतना सरल कार्य नहीं है पर ठान लो तो कोई मुश्किल कार्य भी नहीं है।
बस! हठी बालक की तरह जिद पकड़ ली और अपने जीवन को व्यवस्थित कर लिया।
आप भी अपने जीवन को व्यवस्थित कर लो, अपनी दिनचर्या का आरम्भ देवदर्शन से करो। आपको सौभाग्य से एक दिन और मिल गया जीने के लिए, भक्ति करने के लिए तो सबसे पहले परमात्मा का धन्यवाद करने जाओ।
मंदिर की ऊर्जा से युक्त वर्गणाएं आपके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार करेंगी।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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