मन में न आने दें अनैतिक विचार
मन में न आने दें अनैतिक विचार (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) दूसरों के पाप कर्म देखकर पापी बनना आसान है, मगर पुण्य आत्मा के पुण्य कार्य को देखकर पुण्यात्मा बनना अति कठिन है। पानी ढलान की ओर सहजता से बह जाता है, मगर पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए यंत्र की आवश्यकता पड़ती है, उसके लिए कठिन श्रम करना पड़ता है। दूसरे को सुखी देखकर ईर्ष्या करना आसान है, लेकिन दुःखी को दुःखी देखकर दुःखी होना कठिन है। दुःख देने वाले पाप से बचने का एक ही उपाय है कि स्वयं को पाप विचार से दूर रखें। मन में कभी अनैतिक विचार न आने दें। सांसारिक जीव कल्पना तो श्रेष्ठ की करता है, पर कार्य निकृष्ट करता है। किसी की इज्जत आबरू को गिराने में पल भर भी देर नहीं करता। किसी के आंसुओं से विचलित नहीं होता। आदमी दूसरों के पापों को नकारता है, मगर स्वयं दिन भर उन ही पापों के प्रति आकर्षित रहता है। यह आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी है। धर्म के मामले में आदमी की प्रकृति बिल्कुल विपरीत है। किसी को लाखों का दान देते हुए देखकर भी उसकी धन के प्रति आसक्ति जरा भी कम नहीं होती। वह रेत में पानी खोजने की कोशिश करता रहता है। धनाभाव ...