नास्तिक, नैतिक और धार्मिक

नास्तिक, नैतिक और धार्मिक

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

नास्तिक कौन है? जिसका आचरण और अंत:करण दोनों मलिन और दुष्ट हैं, वह नास्तिक है।

नैतिक आचरण वाला कौन है? जिसका आचरण सुंदर है, वह नैतिक है।

धार्मिक कौन है? जिसका आचरण और अंतर दोनों पवित्र हैं, वह धार्मिक है।

एक व्यक्ति नज़र आने में आस्तिक, करने में भौतिक और बनने पर धार्मिक कहलाता है। वर्तमान में जो थोड़ा बहुत अच्छा होता हुआ दिखाई दे रहा है, उसमें भौतिक आदमी का ही योगदान है।

सभी सोचते हैं कि मुझे सुख चाहिए। यह तो समझ में आता है, पर दूसरों का सुख मुझसे देखा क्यों नहीं जाता? दूसरों को उनकी पूजा-भक्ति से मिली प्रशंसा मुझे अच्छी क्यों नहीं लगती? लोगों की यह मनोवृत्ति मुझे समझ में नहीं आती। दूसरों के दुःख में सहानुभूति दिखाने वाली आँखें दूसरों के सुख में प्रेम क्यों नहीं जताती? यह कैसी मैत्री है? ये कैसे संबंध हैं? क्या यह संबंधों की हत्या नहीं है?

संसार में तीन प्रकार के लोग हैं। पहले नंबर पर है नास्तिक, जो स्वच्छन्द होकर केवल अपना हित चाहता है और दूसरे की हानि में ही प्रसन्न होता है। ऐसा व्यक्ति बेशर्म है जिसका किसी की इज्जत आबरू से ज़रा भी संबंध नहीं है। सब कुछ अपने पास होते हुए भी वह बार-बार सोचता है कि मेरे पास क्या है? गाड़ी है, बंगला है, धन दौलत है, पर वह उससे सन्तुष्ट नहीं है। अपने से ज्यादा अन्य किसी के पास देखता है तो दुःखी हो जाता है। उसे दूसरों का सुख रास नहीं आता। वह ईर्ष्यालु और मायाचारी से भरा रहता है। अतः नास्तिकता से बाहर निकलो और नैतिक बनो।

दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलो और नैतिकता से भी ऊपर उठ कर धार्मिक बनो। एक समय था, जब घर में माता-पिता कहते थे कि पाप करोगे तो तुम्हें भगवान नहीं मिलेगा। उनकी संतान पाप से डर जाती थी, क्योंकि उन्हें भगवान से शक्ति मिलती थी। संकट के समय वे ही उनका एकमात्र सहारा दिखाई देते थे।

फिर युग बदला, चाहत बदली और पाप की हवा चलने लगी। अब माता-पिता कहने लगे कि पाप से दूर रहो अन्यथा तुम्हें दण्ड मिलेगा। तुम्हारा लोक-परलोक बिगड़ जाएगा। आख़िर बच्चे भी कब तक सुनते? उन्होंने भी कह दिया कि आजकल पाप को पाप नहीं माना जाता। इसे तो चतुराई से अपना काम निकालना कहते हैं। क्या आप सभी लोग पाप नहीं कर रहे हैं? आज की दुनिया में जीना है, तो सबके साथ मिलकर जीना पड़ेगा। जो आप लोग कर रहे हैं, हम भी तो वही कर रहे हैं। माता-पिता भी उनकी बात मान गए।

वर्तमान में पाप का समाजीकरण हो गया है। अब तो पाप करते समय एहसास ही नहीं होता कि हम पाप कर रहे हैं। डॉक्टर नकली, दवाई नकली, कंपाउंडर नकली; सब कुछ नकली है, क्योंकि यह दुनिया ही नकली है। सिर्फ मरीज़ ही असली हैं। बड़े-बड़े लोग नकली बन गए हैं। जब कभी पाप करने का अवसर आता है तो कुछ समय के लिए मरीज़ भी नकली बन जाते हैं।

नास्तिक दुःखियों को और दुःखी बनाकर सुखी होता है।

नैतिक व्यक्ति का बाहर से तो व्यवहार अच्छा है, मगर आत्मा मैली है, विकृत है। वह स्वाभिमान से जीता है। कुल-जाति की मर्यादा के कारण अनैतिक आचरण नहीं करता और दूसरों को हानि नहीं पहुंचाता लेकिन स्वयं के सुख की भी उपेक्षा नहीं करता।

धार्मिक व्यक्ति स्वयं से पूछता है - Who am I? मैं क्या हूँ? मैं कौन हूँ? वह स्वयं को शुद्ध आत्मा मानकर उसी भाव से जीता है और अपने अंतःकरण और बाह्य आचरण को पवित्र रखता है।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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