निमित्त उपादान
निमित्त उपादान
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
एक सम्राट बहुत दुःखी था। उसकी एक भी संतान नहीं थी अर्थात् उसके वंश का कोई अंश नहीं था, इसलिए वह रंज में रहता था। उसकी रानी ने सलाह दी, वैसे ही जैसे समय-समय पर सब की पत्नियाँ सलाह देती हैं, उसने भी अपने पति से कहा कि नगर में मुनिराज पधारे हैं। चलो, उनके चरणों में अपनी व्यथा की कथा व्यक्त करेंगे। दोनों मुनिराज के चरणों में गए और उन्हें अपनी पीड़ा बताई। ‘अब मात्र आपकी कृपा ही शेष है। हम आपके पास काफी उम्मीद लेकर आये हैं।’
मुनिराज ने दुःखी आत्मा को करुणा का अमृत पिलाया। उनका प्रशस्त मार्गदर्शन किया और एक मंत्र का जाप करने के लिए दिया, लेकिन इतना और कह दिया कि तुम्हें वंश का अंश तो अवश्य मिलेगा लेकिन वह संत पैदा होगा और बड़ा होकर बहुत बड़ा संत बनेगा तथा बालक के जन्म लेते ही पिता को वैराग्य हो जाएगा।
निमित्त की यही तो विशेषता है कि स्वयं कार्य संपन्न करा कर निकल जाता है और वहां से हट जाता है। रानी के गर्भ में वंश का अंश आया और संत के कथनानुसार सम्राट को उसी समय वैराग्य उत्पन्न हो गया। सम्राट दिगंबर मुनि बनकर वन की ओर चले गए।
बेटा बड़ा हुआ और जब उसने दिगंबर मुनि के दर्शन किए तो वह भी वैरागी हो गया। जैसा निमित्त मिला था वैसा ही काम हुआ। शुद्ध निमित्त ने संत को जन्म दिया, पुत्र भी दिगंबर मुनि बनकर वन की ओर चला गया। रानी ने संतवाणी पर पूर्ण आस्था रखी, विधिवत मंत्र का जाप किया और उसे वंश का अंश मिल गया, कुलदीपक मिल गया।
देखिए! निमित्त का प्रभाव और निमित्त का अर्थ समझिए। नि यानी निश्छल और मित्त यानी मित्र। जो निश्छलता से मित्र है, वही निमित्त है। तो निमित्त का अर्थ हुआ कि बहरों तक परमात्मा की आवाज़ पहुंचाओ और जो उनके कानों में पूर्वाग्रह के जूँ रेंग रहे हैं, उन्हें बाहर निकालो। उनके कान के पर्दे खोलो। उन सोते हुए लोगों को जगाओ, उन्हें नींद से मुक्त करो।
मनुष्य जागने के लिए जैसे घड़ी का अलार्म लगाता है और वह अलार्म उसे जगा भी देता है। चाहे वह उपादान प्रमाद कर जाए और वह नींद से न उठे किंतु अलार्म बंद करने के लिये तो वह उठ ही जाता है और अलार्म बंद करके यानी निमित्त को भगाकर पुनः सो जाता है। निमित्त को व्यवहाररूप से कर्त्ता मानने पर सत्तर कोड़ा-कोड़ी सागर का बंध होता है - यदि ऐसा कोई कहता है तो वह अज्ञानी है। हमें ऐसे पथभ्रष्ट असंयमी पंडितों से बचना चाहिए और निमित्त का पूर्ण लाभ लेना चाहिए।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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