माता-पिता से बड़ा जगत में कोई नहीं

माता-पिता से बड़ा जगत में कोई नहीं

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

माता-पिता के बिना हमारे अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमारे यहां सनातन धर्म में माता को पृथ्वी से बड़ा और पिता को आकाश से ऊँचा दर्जा दिया गया है। माता-पिता का स्थान ईश्वर से भी बड़ा है।

किसी विद्वान ने कहा है कि पानी अपना संपूर्ण जीवन देकर वृक्ष को बड़ा करता है, इसलिए शायद पानी कभी भी वृक्ष की लकड़ी को डूबने नहीं देता। देखा जाए तो माता-पिता का भी यही सिद्धांत है। माता ने हमें जन्म दिया और पिता ने हमें जीवन दिया है। हम उनके उपकार को कभी नहीं भूल सकते। हमारे दुःख में वे दुःखी हो जाते हैं और सुख में आनंद का अनुभव करते हैं। माता-पिता जीवन की प्रत्येक समस्या से हमारी रक्षा करते हैं। हमारा भी दायित्व है कि उन्हें हम जीवन का सर्वोपरि सम्मान दें।

संसार में माता-पिता साक्षात् ईश्वर हैं। जिस तरह ईश्वर कल्याणकारी होता है, वह हमारे दुःखों को दूर करता है, वैसे ही माता-पिता भी सदैव हमारे कल्याण की कामना में लगे रहते हैं। वे हमेशा अपने बच्चों को आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं। वे जो वचन बोलते हैं, वे हमारे लिए हितकर होते हैं। माता-पिता के वचनों को सदैव शुभ जानकर उनका अनुपालन करना चाहिए। माता-पिता की सेवा से हमारी आयु, ज्ञान, यश और बाल बढ़ते हैं।

आज बच्चों ने अपने माता-पिता से स्वार्थ के अनुसार संबंध बना लिया है। माता-पिता कभी भी उम्र के कारण बूढ़े और असहाय नहीं होते, अपितु संतान के गलत आचरण के कारण असमय ही बूढ़े हो जाते हैं। उनसे किए गए गलत आचरण और उपेक्षा की वजह से माता-पिता को अत्यंत ठेस पहुंचती है, किंतु उसके बावजूद भी वे अपनी संतान को सदा आशीर्वाद ही प्रदान करते हैं और उनके मंगल की कामना करते हैं।

हम चाहे कितने भी समृद्ध हो जाएं, माता-पिता के बिना हमारा कोई आधार नहीं है। माता-पिता उस वृक्ष के समान हैं, जो चाहे कितना भी बूढ़ा हो जाए परंतु हमें आजीवन फल नहीं तो छाया तो अवश्य ही प्रदान करेगा। लिहाजा उनकी सेवा से बड़ा न कोई धर्म है और न कोई पूजा।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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