उठो और आगे बढ़ो

उठो और आगे बढ़ो

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ चुन रहा था कि तभी उसने कुछ अनोखा देखा। उसने सोचा - कितना अजीब है यह दृश्य! उसने बिना पैरों की लोमड़ी को देखा और मन ही मन सोचा कि आखिर इस हालत में यह जिंदा कैसे है? उसे घोर आश्चर्य हुआ यह देखकर कि ऊपर से वह बिल्कुल स्वस्थ दिखाई देती थी। वह अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि अचानक चारों तरफ अफरा-तफरी मचने लगी। जंगल का राजा शेर उसी तरफ आ रहा था। वह बौद्ध भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से सब कुछ देखने लगा। शेर ने एक हिरण का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबाकर उस बिना पैरों वाली लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था।

पर यह क्या! उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया बल्कि उसे भी खाने के लिए कुछ मांस के टुकड़े डाल दिए। यह तो घोर आश्चर्य है। शेर लोमड़ी को मारने की बजाय उसे भोजन दे रहा है - भिक्षुक बुदबुदाया।

उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था, इसलिए वह अगले दिन फिर वहीं आया और छिपकर शेर का इंतजार करने लगा। आज भी वैसा ही हुआ। शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया। यह भगवान के होने का प्रत्यक्ष प्रमाण था। भिक्षुक ने अपने आप से कहा कि भगवान जिसे पैदा करता है, वह उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है। आज से इस लोमड़ी की तरह मैं भी ऊपर वाले की दया पर जीऊँगा। वह मेरे भोजन की भी व्यवस्था करेगा।

और ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। पहला दिन बीता, पर वहाँ भोजन देने कोई नहीं आया। जो राहगीर आए भी तो उन्होंने भिक्षुक की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इधर बिना कुछ खाए-पिए वह कमजोर होता जा रहा था। इसी तरह कुछ दिन और बीत गए। अब तो उसकी रही सही ताकत भी खत्म हो गई। वह चलने-फिरने के लायक भी नहीं रहा। उसकी हालत बिल्कुल मृत व्यक्ति की तरह हो चुकी थी।

तभी एक महात्मा उधर से गुजरे और भिक्षुक के पास पहुंचे। उसने अपनी सारी कहानी महात्मा जी को सुनाई और कहा - अब आप ही बताइए कि भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में पहुँचाना पाप नहीं है?

बिल्कुल है, महात्मा जी ने कहा, लेकिन तुम इतने मूर्ख कैसे हो सकते हो? तुमने यह क्यों नहीं समझा कि यह भगवान तुम्हें उस शेर की तरह बनते देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह नहीं। तुम्हारे पास तो दोनों हाथ-पैर सलामत हैं।

दोस्त! हमारे जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीज़ें जिस तरह समझनी चाहिएं, उसके विपरीत समझ लेते हैं। ईश्वर ने हम सभी के अंदर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां दी हैं, जो हमें महान बना सकती हैं। ज़रूरत है कि हम उन्हें पहचान लें।

भिक्षुक को उसकी गलती का एहसास करने के लिए महात्मा जी मिल गए, पर हमें खुद भी चौकन्ना रहना चाहिए कि कहीं हम लोमड़ी तो नहीं बन रहे और हमें शेर बनना था।

उठो, आगे बढ़ो और शेर के समान असहाय की सहायता करने वाले बनो।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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