सूखी और गीली लकड़ी

सूखी और गीली लकड़ी

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

जीवन में सदा गीली लकड़ी की तरह बनो, सूखी लकड़ी नहीं।

यदि किसी सरोवर में पत्थर फेंकें, तो पानी में भंवर पैदा होता है और कुछ क्षण बाद वह पत्थर डूब जाता है। यदि सूखा पत्ता सरोवर में फेंकें तो वह तैर जाता है और उस सरोवर की शोभा बढ़ा देता है। यह दृश्य आँखों को बहुत अच्छा लगता है। इसी प्रकार पारिवारिक संबंधों के सरोवर में क्रोध और अहंकार का पत्थर डालें तो वह पानी को उद्वेलित करके डूब जाता है और पानी अर्थात् संबंधों को भी गंदा कर देता है। हमारे मुँह से निकलने वाले शब्द कटु वचन की तरंगें पैदा करते हैं और संबंध कषाय और घृणा पैदा करके डूब जाते हैं। ऐसे वचन संबंधों में खटास पैदा करते हैं। दिलों में दीवारें खड़ी करते हैं। कटु वचन दूध में पड़ी मक्खी का काम करते हैं। इससे पारिवारिक प्रेम निभते नहीं बल्कि टूटते हैं और बिखरते हैं।

पानी का काम दूध नहीं कर सकता और दूध का काम पानी नहीं कर सकता। स्वर्ण का काम लोहा नहीं कर सकता और लोहे का काम स्वर्ण नहीं कर सकता। चंदन का काम कोयला नहीं कर सकता और कोयले का काम चंदन नहीं कर सकता। इत्र का काम कैरोसिन नहीं कर सकती और कैरोसिन का काम इत्र नहीं कर सकता। दुनिया में एक शब्द ही ऐसा है जो जोड़ता भी है और तोड़ता भी है। पास भी बुलाता है और दूर भी भगाता है।

शब्द सम्मोहित भी करते हैं और विकर्षित भी करते हैं। जीवन को समाप्त भी कर सकते हैं और जीवन को दे भी सकते हैं। प्रतिष्ठा को ऊपर भी ले जा सकते हैं और खाई में भी गिरा सकते हैं। शब्द वाणी का सौन्दर्य भी बन सकते हैं और वाणी को विकृत भी कर सकते हैं। इसलिए कहता हूँ कि मुख से शब्द निकलने से पहले सावधानी बरतिए।

जैसे सुप्रीम कोर्ट का जज एक-एक शब्द संभाल कर बोलता है। शब्द बंदूक की गोली के समान है जो शत्रु को मार भी सकती है और मित्र को शत्रु भी बना सकती है। शब्द संपदा भी है और कचरा भी है। मयूर के पास शारीरिक सौंदर्य है लेकिन वाणी की मधुरता नहीं है। इसलिए मोर अपने शरीर के सौंदर्य को दिखाकर नृत्य करता है और पांव की विद्रूपता को देखकर रोता है।

मुंबई में एक व्यक्ति ने आकर कहा - गुरु जी! आज मैं आपको धन्यवाद देने आया हूँ।

क्यों भाई! मैंने ऐसा क्या किया?

मेरे पुत्र व पुत्रवधू आपके प्रवचन सुनने प्रतिदिन आते हैं। आपके प्रवचन से मेरे परिवार में सबके स्वभाव बदल गए हैं। जैसे मेरे घर में स्वर्ग उतर गया हो।

इतने में उसकी धर्मपत्नी आई। उसने आते ही कहा कि वैसे तो मेरा स्वभाव तीखा है। मुझे जरा-जरा सी बात पर क्रोध आ जाता है। मैं बहू को हमेशा डांटती रहती हूँ - आज चाय ज्यादा क्यों बनाई? दूध ज्यादा क्यों लिया? साड़ियां बिखरी क्यों पड़ी हैं? प्याला कैसे टूट गया? देर रात तक बिजली क्यों जलाई? इन छोटी-छोटी बातों पर बहू को डांटती रहती हूँ। मेरे क्रोधी स्वभाव के कारण मेरा घर नर्क बन गया था, लेकिन आपके प्रवचन के प्रभाव से मेरा घर स्वर्ग बनता जा रहा है।

उसी समय बेटा और बहू आ गए। बेटे ने कहा - घर में जो भी सामान टूट जाता है या खो जाता है तो मैं तुरंत नया सामान लाकर दे देता हूँ। चाय अधिक बन जाती है तो बहू सबको मना कर और चाय पिला देती है व नौकरानी को भी पिला देती है और बहू माँ को शांत रखने के लिए हर बात में क्षमा मांगती रहती है। उससे घर के नौकर भी खुश होते हैं और घर में शांति भी बनी रहती है। अब घर में प्यार और आत्मीयता का सुखद स्वर्णिम आनंद बरस रहा है।

घर में किसी का स्वभाव सूखी लकड़ी जैसा नहीं है कि क्रोधाग्नि के मिलते ही भड़क उठे। सब गीली लकड़ी के समान हैं। गीली लकड़ी आग को पकड़ती नहीं और सूखी लकड़ी आग को पकड़े बिना रहती नहीं। परिवार के सरोवर में क्रोध के पत्थर नहीं बल्कि प्रेम और आत्मीयता के फूल खिल गए हैं। पूरा परिवार आत्मीय सुख से आनंदित है।

घर में शांति बनाए रखने के लिए सोने का बिस्तर भी ज्यादा मोटे गद्दे वाला नहीं होना चाहिए। आपने देखा होगा कि जो लोग डनलप के गद्दे पर सोते हैं, उनकी कमर टूट जाती है। कमर दर्द करने लगती है। फिर डॉक्टर कहता है कि अब कमर पर पट्टा लगेगा। आपने देखा होगा कि संत भगवंत लोग सख्त तख्त, चट्टान या चटाई पर लेटा करते हैं। इसी कारण आज तक किसी योगी की कमर पर पट्टा नहीं बंधा। आप बिस्तर पर लेटने के लिए जाएं तो एक बात का ध्यान रखें कि आपको बिस्तर कहाँ लगाना है? दरवाजे के ठीक सामने आपका बिस्तर नहीं होना चाहिए। किसी भी बीम या पंखे के नीचे आपका बिस्तर नहीं होना चाहिए।

यदि आपका पलंग दरवाजे के ठीक सामने है या बीम के नीचे है तो आप वहां से हटा लें और यदि नहीं हटा सकते तो कम से कम दरवाजे पर पर्दा अवश्य डाल दें और बीम के नीचे एक चंदोवा अवश्य बांध दें। पंखें के नीचे तो बिस्तर होना ही नहीं चाहिए क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से सिर के ऊपर कोई भारी वस्तु टंगी हो तो सिर भारी हो जाता है और आध्यात्मिक दृष्टि से जहां ऊर्जा आती है उसके सामने या नीचे खड़े हो जाओ तो ज्यादा ऊर्जा आएगी और यदि सहन नहीं कर पाए तो बीमार भी हो सकते हो और व्यावहारिक दृष्टि से यदि किसी कारण पंखा टूट गया और नीचे गिर पड़ा तो तुम्हारा मरण भी कर सकता है।

वास्तु विधान के अनुसार आपका शयन कक्ष दक्षिण दिशा में हो तो अति उत्तम होगा। बिस्तर पर लेटो तो आपके पाँव पूर्व या उत्तर की तरफ होने चाहिएं, न कि दक्षिण व पश्चिम की तरफ। क्योंकि पश्चिम की तरफ पैर करके सोने से भोग विलास आदि के स्वप्न दिखाई देने लगते हैं।

जो लोग दक्षिण की ओर पैर करके सोते हैं, उन्हें डरावने सपने अधिक दिखाई देते हैं। भूत, प्रेत व राक्षस आदि के भयानक स्वप्न दिखाई देते हैं। आपने देखा होगा कि रात्रि में छोटे-छोटे बच्चे सोते समय अचानक रोने लगते हैं। इसका कारण यही है कि वे डर जाते हैं। उनकी भी सोने की दिशा बदल देनी चाहिए। दक्षिण दिशा तंत्र-मंत्र की दिशा है। जितने भी तांत्रिक लोग होते हैं, वे दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ही तंत्र-मंत्र सिद्ध करते हैं।

पूर्व दिशा हमारे पूर्वजों की दिशा है। हमारी संस्कृति की दिशा है, नमस्कार की दिशा है। वहाँ से हमें ऊर्जा मिलती है, एनर्जी मिलती है। इसलिए हमारे पैर पूर्व दिशा की ओर होने चाहिए और उत्तर दिशा समाधान की दिशा है। हमारे मन के विकल्पों को शांत करने की दिशा है और ऐसा आचार्य भी कहते हैं कि उत्तर दिशा में विदेह क्षेत्र है जहां 20 तीर्थंकर भगवान हमेशा विद्यमान रहते हैं। तो हमारे मन के सारे तंतु उनसे जुड़ जाते हैं और फिर हर शंका का समाधान होना प्रारंभ हो जाता है।

आपके मन में एक जिज्ञासा उठ गई होगी कि जब पूर्व दिशा हमारे पूर्वजों की दिशा है और उत्तर में विदेह क्षेत्र है तो उधर पैर क्यों करना?

अगर देखा जाए तो कोई भी ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ देवी देवताओं का वास न हो। फिर हम किस दिशा की ओर अपने पैर करेंगे? यह बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। इसलिए अपने मन में किसी भी देवी देवता के अपमान का भाव नहीं है फिर भी जो दिशा अच्छी हो और जहाँ से अच्छी ऊर्जा मिलती हो तो हमें उधर ही पैर करके सोना चाहिए और घर की शांति को बनाए रखना चाहिए।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता