पूर्वाग्रह की कालिमा

पूर्वाग्रह की कालिमा

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

शाम का समय था। माँ ने अपने बेटे से कहा - बेटा! ज़रा यह दीपक को जला दे।

बेटा दीपक जलाने गया। माचिस की पूरी कारी जला डाली लेकिन दीपक नहीं जला।

माँ ने आवाज़ दी - बेटा! क्या कर रहा है? जल्दी से दीपक लेकर आ।

माँ! दीपक तो जलता ही नहीं है।

क्या? क्यों? क्या बात है?

माँ ने बेटे के पास आकर देखा कि माचिस की सारी कारी जल चुकी है, लेकिन दीपक की बाती नहीं जल रही है। उसने दीपक की बाती को ध्यान से देखा और कहा - बेटा! बाती पुरानी है। इसके अग्र भाग पर, इसके मुख पर कालिमा लगी है। दीपक में तेल होते हुए भी यह इसी कारण नहीं जल रही है। पहले बाती के मुख से जला हुआ कालापन दूर कर। फिर बाती जलाना।

बेटे ने बाती से पूर्व का कालापन दूर किया। तेल में बाती को डुबोया। जलती हुई कारी का स्पर्श करते ही वह बाती जल गई। बाती के मुख पर लगा हुआ पूर्व का कालापन अग्नि को ग्रहण करने में बाधक बना हुआ था।

इसी प्रकार आपका पूर्वाग्रह भी सत्य को ग्रहण करने में बाधक है। आपके हृदय रूपी दीपक में तेल है लेकिन बुद्धि की बाती पर पूर्वाग्रह की कालिमा लगी है। आप संतों का प्रवचन सुनने आते हैं लेकिन अश्रद्धा का कालापन अपनी आत्मा की बाती पर लगाकर लाते हैं। यहां से प्रवचन की माचिस से शब्दों की कारी जला-जला कर आपकी बाती से लगाता हूँ, लेकिन सभी कारियां व्यर्थ हो जाती हैं।

आप पूर्वाग्रह की कालिमा झाड़कर आएं, फिर देखें कि आपके हृदय की बाती कैसे नहीं जलती? एक न एक दिन वह अवश्य ही जलेगी। दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखें। यदि दर्पण पर धूल जमी होगी, तो अपना प्रतिबिम्ब साफ़ नहीं दिखेगा। मन के दर्पण से भी कामना और वासना की धूल साफ करें फिर उसके बाद अपना प्रतिबिंब देखने का प्रयास करें। तब आपको सत्य का ज्ञान होगा और अपनी आत्मा स्पष्ट रूप से अनुभव में आने लगेगी।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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