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स्वतंत्रता दिवस

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स्वतंत्रता दिवस (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) आज हम स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आन, बान और शान से अपने तिरंगे ध्वज को आसमान में लहरा कर सारी दुनिया को यह संदेश देते हैं कि देखो! विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, सबसे ऊँचा रहे हमारा। लेकिन वर्तमान परिवेश में दूषित राजनीति, आतंकवाद और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव आदि के फैलाव की बदबू के कारण इस लहराते हुए तिरंगे की खुशबू कुछ कम सी हो गई है और इसके लिए जिम्मेदार और कोई नहीं, बल्कि हम स्वयं ही हैं, क्योंकि आज देश तो आजाद है, हमारा तन, मन, धन तो आजाद है, लेकिन आजाद नहीं है तो हमारे विचार। और मैं समझता हूँ कि विचारों की गुलामी औपनिवेशिक गुलामी से अधिक खतरनाक होती है। शायद हमें आजादी की हरी मुलायम घास नहीं सुहाती, गुलामी के मेवे अधिक पसंद हैं। गांधी और सुभाष ने आजाद हिंदुस्तान की कैसी कल्पना की थी, परंतु इस देश के हुक्मरानों ने मेरे इस प्यारे हिंदुस्तान की उन कल्पनाओं को तहस-नहस कर डाला। मुझे इसके राजनैतिक स्वरूप में आरोपित किए जाने वाले संस्कार मरघट की अग्नि के समान दिखाई दे रहे हैं, जिसमें उत्साह नहीं, बल्कि अग्नि के बुझन...

दीपावली मनाने का उद्देश्य

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दीपावली मनाने का उद्देश्य (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) दीपावली के दिन हम दीप जलाते हैं। यह पर्व हमें यही बतलाता है कि अपने हृदय में सत्य का प्रकाश करें और ज्ञान रूपी दीपक जलाएं। दीपावली भारतीय संस्कृति का पर्व है। इसके पीछे अनेक महापुरुषों के जीवन एवं कार्यों व घटनाओं का अपूर्व इतिहास है। भगवान महावीर, भगवान राम आदि महापुरुषों का संबंध दीपावली पर्व से है। दीपावली के दिन जैनों के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने अपने कर्मों पर विजय प्राप्त करके आत्मा के वास्तविक शुद्ध आत्मस्वरूप को प्राप्त किया था। महावीर भगवान ने मोह रूपी शत्रु को जीतने के ध्येय से उत्तम ध्यान को जयशील अस्त्र बनाया। उन्हें केवल ज्ञान हुआ और वह सर्वज्ञ हो गए। अहिंसा, सत्य, अचौर्य आदि महाव्रतों का उपदेश दिया और श्रावकों को सत्य का मार्ग दिखाया। अहिंसा का जयघोष किया और मात्र 30 वर्ष की अल्पायु में ही जैनेश्वरी दीक्षा लेकर साधना की और लोगों को धर्म श्रवण कराया। कार्तिक बदी अमावस्या के ब्रह्म मुहूर्त में स्वाति नक्षत्र में वे मोक्ष चले गए। इसकी खुशी में हम दीपावली पर्व मनाते हैं। यह पर्व हमें...

क्यों मनाते हैं दीपावली?

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क्यों मनाते हैं दीपावली? (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहाँ रहने वाले लोग उत्सव प्रिय हैं। इसी उत्सवप्रियता के कारण वर्ष में 365 दिन होने के बावजूद यहां 365 से भी अधिक त्यौहार व पर्व मनाए जाते हैं। भारत एक धर्मपरायण देश है। जहां देश भर में अनेक प्रकार के पर्व मनाये जाते हैं, जैसे राष्ट्रीय, सामाजिक, ऐतिहासिक, धार्मिक आदि। मुख्य रूप से मनाए जाने वाले पर्व चार है, जिन्हें विशेषकर सभी धर्मानुयायी मनाया करते हैं। वे हैं - होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली। यह चारों पर्व सामाजिक भी हैं, पूर्व में घटी हुई घटनाओं के कारण ऐतिहासिक भी हैं और किसी आधार से धार्मिक भी। चारों वर्णों की मुख्यता से यह चारों पर्व मुख्य हैं। क्योंकि होली शूद्रों का त्यौहार है, रक्षाबंधन ब्राह्मणों का त्यौहार है, दशहरा क्षत्रियों का त्यौहार है और दीपावली वैश्यों का त्यौहार है। वणिकों का त्यौहार होने के बाद भी इसे सभी धर्मानुयायी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार खुशी के दीप जलाते हैं। दीपावली मनाने के पीछे एक नहीं अनेक कारण है, अनेक घटनाएं ...

कभी बदले की भावना नहीं करना

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कभी बदले की भावना नहीं करना (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार नेल्सन मंडेला अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गए। सबने अपनी-अपनी पसंद का खाना ऑर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे। इसी समय मंडेला की टेबल के सामने वाली टेबल पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतजार कर रहा था। मंडेला ने अपने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो। ऐसा ही हुआ। खाना आने के बाद सभी खाना खाने लगे। वह आदमी भी अपना खाना खाने लगा पर खाते हुए उसके हाथ लगातार काँप रहे थे। खाना खत्म कर के वह आदमी सर झुकाकर रेस्तरां से बाहर निकल गया। उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारियों ने मंडेला से कहा कि वह व्यक्ति शायद बहुत बीमार था। खाते वक्त उसके हाथ लगातार काँप रहे थे और वह खुद भी काँप रहा था। मंडेला ने कहा कि नहीं! ऐसा नहीं है। वह उस जेल का जेलर था जिसमें मुझे कैद करके रखा गया था। जब कभी मुझे यातनाएं दी जाती थी और मैं कराहते हुए पानी मांगता था, तो यह मेरे ऊपर लघुशंका करता था। मंडेला ने कहा कि मैं अब राष्ट्रपति ...

प्रभु को प्राप्त करना है

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प्रभु को प्राप्त करना है (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) एक राजा ने यह ऐलान करवा दिया कि कल सुबह जब मेरे महल का मुख्य दरवाजा खोला जाएगा, तब जिस शख्स ने जिस चीज़़ को हाथ लगा दिया वह उसकी हो जाएगी। ऐसे ऐलान को सुनकर सब लोग बातचीत करने लगे कि मैं तो सबसे महंगी चीज को हाथ लगाऊँगा। कुछ लोग कहने लगे कि मैं तो सोने को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग चांदी और कीमती जेवरात को, कुछ लोग घोड़े को, कुछ लोग दुधारू गाय को हाथ लगाने की बात कहने लगे। जब सुबह महल का मुख्य दरवाजा खुला, तब सब लोग अपनी मनपसंद चीजों के लिए दौड़ने लगे। सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद चीज को हाथ लगा लूँ ताकि वह चीज़ मेरी हो जाए। राजा अपनी जगह पर बैठा हुआ सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग-दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था। उसी समय उस भीड़ में से एक शख्स राजा की तरफ बढ़ने लगा तथा धीरे-धीरे चलता हुआ राजा के पास पहुँचकर उसने राजा को छू लिया। राजा को हाथ लगाते ही राजा उसका हो गया और राजा की हर चीज़ भी उसकी हो गई। जिस तरह राजा ने उन लोगों को मौका दिया और उन लोगों ने गलतियाँ की अन्य वस्तुओं को पाने की, लेकिन...

सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है

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सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) एक गरीब आदमी एक दिन एक सरदार जी के पास अपनी जमीन बेचने गया। वह बोला - सरदार जी! मेरी दो एकड़ जमीन आप खरीद लो। सरदार जी बोले - कहाँ है वह ज़मीन और क्या कीमत है उस ज़मीन की? गरीब बोला - जी! वही खेत है, जिसमें ट्यूबवेल लगा है। आप मुझे 50000 रुपए से कुछ कम भी देंगे तो मैं जमीन आपको दे दूँगा। सरदार जी ने आँखें बंद की और 5 मिनट सोच कर बोले - नहीं! मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपए दूँगा। गरीब व्यक्ति ने कहा - पर मैं तो 50000 रुपए मांग रहा हूँ। आप 2 लाख क्यों देना चाहते हैं? सरदार जी बोले - पहले यह बताओ कि तुम इतने सस्ते में ज़मीन क्यों बेच रहे हो? गरीब व्यक्ति बोला - जी! बेटी की शादी करनी है, इसलिए मजबूरी में बेच रहा हूँ। पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं? सरदार जी बोले - मुझे ज़मीन खरीदनी है, किसी की मजबूरी नहीं। आपकी जमीन की कीमत मुझे मालूम है, इसलिए 2 लाख दे रहा हूँ। मुझे आपकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना। ऐसे काम से मेरे वाहेगुरु कभी खुश नहीं होंगे। ऐसी जमीन या कोई भी साधन जो किसी की मजबूरी को देखकर खरीदी जाए, वह ज़िंदगी में ...

अनमोल वचन - पुण्य-पाप, सुख-दुःख

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अनमोल वचन - पुण्य-पाप, सुख-दुःख (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) धरती के पास सब कुछ है, लेकिन एक चीज नहीं है - घमंड । पानी के पास सब कुछ है, लेकिन एक चीज नहीं है - छुआछूत की बीमारी । शास्त्रों में सब कुछ है, पर एक चीज नहीं है - झूठ । आदमी में सब कुछ है, पर एक चीज नहीं है - जीवन में सब्र नहीं है । सत्य कड़वा लगता है पर वह होता बहुत मीठा है। महावीर भगवान कहते हैं - सुख में और दुःख में सब्र रखना चाहिए। थोड़ा-सा दुःख आया नहीं कि भगवान.... भगवान.... चिल्लाने लगे। भगवान तो न लेता है और न देता है। वह तो तराजू के समान है, जो सुख व दुःख दोनों पलड़ों को समान रखता है। व्यक्ति सुख में परमात्मा को याद नहीं करता। उपसर्ग और परिशह - जानबूझ कर दुःख लाना परिशह है और अकस्मात् दुःख का आ जाना उपसर्ग है। जिंदगी के बगीचे में सुख व दुःख दोनों होते हैं, जैसे अंगूर के बगीचे में सभी अंगूर मीठे भी नहीं होते और खट्टे भी नहीं होते। ऐसी चार चीजें होती हैं जो पहले सुख देती हैं और बाद में दुःख देती हैं - इन्द्रिय सुख। तलवार में लगा शहद। स्वान का हड्डी को चबाना। खाज खुजाना। ऐसी तीन बातें होती हैं ...