कभी बदले की भावना नहीं करना

कभी बदले की भावना नहीं करना

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार नेल्सन मंडेला अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गए। सबने अपनी-अपनी पसंद का खाना ऑर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे। इसी समय मंडेला की टेबल के सामने वाली टेबल पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतजार कर रहा था। मंडेला ने अपने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो।

ऐसा ही हुआ। खाना आने के बाद सभी खाना खाने लगे। वह आदमी भी अपना खाना खाने लगा पर खाते हुए उसके हाथ लगातार काँप रहे थे। खाना खत्म कर के वह आदमी सर झुकाकर रेस्तरां से बाहर निकल गया। उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारियों ने मंडेला से कहा कि वह व्यक्ति शायद बहुत बीमार था। खाते वक्त उसके हाथ लगातार काँप रहे थे और वह खुद भी काँप रहा था।

मंडेला ने कहा कि नहीं! ऐसा नहीं है। वह उस जेल का जेलर था जिसमें मुझे कैद करके रखा गया था। जब कभी मुझे यातनाएं दी जाती थी और मैं कराहते हुए पानी मांगता था, तो यह मेरे ऊपर लघुशंका करता था।

मंडेला ने कहा कि मैं अब राष्ट्रपति बन गया हूँ। उसने समझा कि मैं उसके साथ शायद वैसा ही व्यवहार करूँगा, पर मेरा चरित्र ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि बदले की भावना से काम करना विनाश की ओर ले जाता है तथा धैर्य और सहिष्णुता की मानसिकता हमें विकास की ओर ले जाती है।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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