सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है

सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

एक गरीब आदमी एक दिन एक सरदार जी के पास अपनी जमीन बेचने गया। वह बोला - सरदार जी! मेरी दो एकड़ जमीन आप खरीद लो।

सरदार जी बोले - कहाँ है वह ज़मीन और क्या कीमत है उस ज़मीन की?

गरीब बोला - जी! वही खेत है, जिसमें ट्यूबवेल लगा है। आप मुझे 50000 रुपए से कुछ कम भी देंगे तो मैं जमीन आपको दे दूँगा।

सरदार जी ने आँखें बंद की और 5 मिनट सोच कर बोले - नहीं! मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपए दूँगा। गरीब व्यक्ति ने कहा - पर मैं तो 50000 रुपए मांग रहा हूँ। आप 2 लाख क्यों देना चाहते हैं?

सरदार जी बोले - पहले यह बताओ कि तुम इतने सस्ते में ज़मीन क्यों बेच रहे हो?

गरीब व्यक्ति बोला - जी! बेटी की शादी करनी है, इसलिए मजबूरी में बेच रहा हूँ। पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं?

सरदार जी बोले - मुझे ज़मीन खरीदनी है, किसी की मजबूरी नहीं। आपकी जमीन की कीमत मुझे मालूम है, इसलिए 2 लाख दे रहा हूँ। मुझे आपकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना। ऐसे काम से मेरे वाहेगुरु कभी खुश नहीं होंगे। ऐसी जमीन या कोई भी साधन जो किसी की मजबूरी को देखकर खरीदी जाए, वह ज़िंदगी में सुख नहीं देती। इससे तो आने वाली पीढ़ियाँ भी मिट जाती हैं।

सरदार जी ने कहा - मेरे मित्र! तुम खुशी-खुशी अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो। 50000 की व्यवस्था हम गांव वाले मिलकर कर लेंगे। तुम्हारी ज़मीन भी तुम्हारी ही रहेगी। जब तुम्हारे पास हों, तब गाँव वालों की मदद कर देना। मेरे गुरु नानक देव साहब ने अपनी वाणी में यही हुकुम दिया है।

गरीब व्यक्ति हाथ जोड़कर नीर भरी आँखों के साथ दुआएं देते हुए चला गया। हम भी अपना ऐसा जीवन बना सकते हैं।

बस! किसी की मजबूरी न खरीदें। किसी के दर्द या मजबूरी को समझ कर सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है। यह एक यज्ञ है। सच्चा कर्म और प्रभु की बंदगी है।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता