स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता दिवस
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
आज हम स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आन, बान और शान से अपने तिरंगे ध्वज को आसमान में लहरा कर सारी दुनिया को यह संदेश देते हैं कि देखो! विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, सबसे ऊँचा रहे हमारा।
लेकिन वर्तमान परिवेश में दूषित राजनीति, आतंकवाद और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव आदि के फैलाव की बदबू के कारण इस लहराते हुए तिरंगे की खुशबू कुछ कम सी हो गई है और इसके लिए जिम्मेदार और कोई नहीं, बल्कि हम स्वयं ही हैं, क्योंकि आज देश तो आजाद है, हमारा तन, मन, धन तो आजाद है, लेकिन आजाद नहीं है तो हमारे विचार। और मैं समझता हूँ कि विचारों की गुलामी औपनिवेशिक गुलामी से अधिक खतरनाक होती है। शायद हमें आजादी की हरी मुलायम घास नहीं सुहाती, गुलामी के मेवे अधिक पसंद हैं।
गांधी और सुभाष ने आजाद हिंदुस्तान की कैसी कल्पना की थी, परंतु इस देश के हुक्मरानों ने मेरे इस प्यारे हिंदुस्तान की उन कल्पनाओं को तहस-नहस कर डाला। मुझे इसके राजनैतिक स्वरूप में आरोपित किए जाने वाले संस्कार मरघट की अग्नि के समान दिखाई दे रहे हैं, जिसमें उत्साह नहीं, बल्कि अग्नि के बुझने की प्रतीक्षा की जाती है। विचारों में अपेक्षित नैतिकता, स्वप्न मात्र ही नज़र आती है। प्रार्थनाएं थक कर मौन हो चुकी हैं। अंधी रोशनियाँ, झुलसी हुई चुप्पियाँ, गूंगे दुःख, तड़पता एहसास, दिन प्रतिदिन समस्याओं में उलझते लोग। नहीं....मित्रों! नहीं....। यह नहीं थी हमारी आजाद हिंदुस्तान की कल्पना!!
कहाँ तो इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था, यहाँ दूध-दही की नदियां बहा करती थी, लेकिन हमारी संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों पर यह कठोर आघात क्यों? और कब तक सहेंगे हम इन्हें? इस प्रश्न का उत्तर तो शायद कोई राजनेता ही दे सकता है।
राजनीति गंदी हुई, मैली हुई गांधी की चादर।
आस्तीन में विषधर छुपे, यहाँ वहाँ और इधर उधर।।
हम आस्तीन में साँप पाल कर बैठे हैं और इसके बावजूद भी शायद हम अपनी स्वतंत्रता का मूल्य नहीं आंक पा रहे हैं अर्थात् आज हम स्वतंत्र होने पर भी, अपना खुद का संविधान होने पर भी हम पश्चिमी देशों का अनुकरण करते हैं।
सैकड़ों वीर मातृभूमि की रक्षा की खातिर शहीद हो गए। आखिर क्यों? किस की खातिर? क्या उनका कोई घर-बार या परिवार नहीं था, जिनके लिए उन्हें जीना था?
अरे! धन्य हैं वे पिता, जिन्होंने अपने लालों को देश पर कुर्बान कर दिया। धन्य हैं वे नारियां, जिन्होंने अपने सिंदूर को भारत माता के चरणों में समर्पित कर दिया। धन्य है वे बहिनें, जिन्होंने अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उन्हें अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए खुशी-खुशी बलिदान होने के लिए विदा कर दिया। एक माँ का दिल बेटे के शहीद हो जाने के बाद भी माँ भारती की लाज बचाने के लिए सदैव तत्पर रहता था। धन्य है ऐसा ममत्व, ऐसी माँ की कोख, जो ऐसे बेटों को जन्म देती है।
एक माँ का संदेश भी बेटे के शहीद हो जाने पर यही होता है कि -
सूने आंगन में निहारती माँ जानती है,
अब उसका बेटा कभी वापिस नहीं आएगा।
अपने पैरों पर गया है मन में एक उमंग लिए,
अब चार कंधों पर तिरंगा लिपटा कर आएगा।
फिर भी न डर, एक चाह सूनी आँखों में,
कल उसका पोता भी फिर सीमा पर जाएगा।
तोड़ देगा सारी नियंत्रण रेखा को,
दुश्मन की छाती पर तिरंगा लहराएगा।।
पर क्या हम इतने स्वार्थी हो चुके हैं कि उन शहीदों की शहादत को भुला दें? क्या हमारा इस देश के प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता? क्या हम इस देश के वासी नहीं हैं? उन शहीदों की शहादत की स्मृतियों को सदा अपने सीने में जागृत रखो।
आज देश में सबसे बड़ी समस्या है तो वह है हमारे पड़ोसी देशों की, जो बार-बार हमारी पीठ पर वार करके अपनी हैवानियत का परिचय देते हैं। परंतु इतना सब होने पर भी हम महावीर, बुद्ध, गांधी के आदर्शों को मानने वाले लोग सुख और शांति का संदेश देकर उन्हें समझाने की कोशिश करते रहते हैं।
उसका एक उदाहरण हम आगरा शिखर वार्ता का ही ले सकते हैं, जब हमारे प्रधानमंत्री जी ने पाकिस्तान को प्रेम की निशानी ‘ताज’ पर निमंत्रण देकर प्रेम की भाषा सिखाने का प्रयत्न किया। किंतु यह प्रेम की भाषा उस नापाक की समझ में नहीं आई और इसका उत्तर उसने फिर अपनी हैवानियत दिखा कर दिया।
ऐसे नापाक परदेशी को तो अपने देश में ही बुलाना ही माँ भारती की रज को दूषित करना है। परन्तु कुछ आंतरिक तत्व हमारे देश को नुकसान पहुँचा कर भारतवासियों के पवित्र मन को ठेस पहुंचा रहे हैं। अरे! गीदड़ भी अपने घर में शेर होता है, इसीलिए तो पड़ोसी देश भी गिने-चुने अस्त्रों का नाम लेकर हमेशा हमें डराते रहते हैं। इस चूहे-बिल्ली के खेल से तो अच्छा है कि हम सदा के लिए उनका नाम ही दुनिया के नक्शे से मिटा दें।
आज हम उन शहीदों की शहादत को याद करके कसम खाते हैं कि हम माँ भारती की रक्षा के लिए अपना तन-मन-धन लगा देंगे और निष्ठापूर्वक अपनी स्वाधीनता की रक्षा करेंगे एवं अपने संविधान का पालन करेंगे।
‘धन्यवाद’
‘जय हिंद! जय भारत!!’
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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