क्यों मनाते हैं दीपावली?
क्यों मनाते हैं दीपावली?
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहाँ रहने वाले लोग उत्सव प्रिय हैं। इसी उत्सवप्रियता के कारण वर्ष में 365 दिन होने के बावजूद यहां 365 से भी अधिक त्यौहार व पर्व मनाए जाते हैं।
भारत एक धर्मपरायण देश है। जहां देश भर में अनेक प्रकार के पर्व मनाये जाते हैं, जैसे राष्ट्रीय, सामाजिक, ऐतिहासिक, धार्मिक आदि। मुख्य रूप से मनाए जाने वाले पर्व चार है, जिन्हें विशेषकर सभी धर्मानुयायी मनाया करते हैं। वे हैं - होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली। यह चारों पर्व सामाजिक भी हैं, पूर्व में घटी हुई घटनाओं के कारण ऐतिहासिक भी हैं और किसी आधार से धार्मिक भी।
चारों वर्णों की मुख्यता से यह चारों पर्व मुख्य हैं। क्योंकि होली शूद्रों का त्यौहार है, रक्षाबंधन ब्राह्मणों का त्यौहार है, दशहरा क्षत्रियों का त्यौहार है और दीपावली वैश्यों का त्यौहार है। वणिकों का त्यौहार होने के बाद भी इसे सभी धर्मानुयायी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार खुशी के दीप जलाते हैं। दीपावली मनाने के पीछे एक नहीं अनेक कारण है, अनेक घटनाएं हैं।
सिक्ख दीपावली इसलिए मनाते हैं कि जब मुग़ल सम्राट जहांगीर ने 52 राजाओं को ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना लिया था, उन बंदी बनाए हुए राजाओं में सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद जी भी थे। कैद अवस्था में हरगोविंद सिंह ने अपने पराक्रम और बुद्धि बल से स्वयं को एवं सभी कैदियों को कारागार से मुक्त किया था। वह दिन कार्तिक बदी अमावस्या का था। उसी दिन की स्मृति के रूप में आज भी सिख संप्रदाय के लोग दीप जलाकर दीपावली मनाते हैं।
आर्य समाज में रहने वाले लोग दीपावली इसलिए मनाते हैं कि आधुनिक युग के समाज सुधारक, आर्य समाज के प्रतिष्ठापक आर्य समाज के जन्मदाता महर्षि दयानंद को उनके ही नौकर ने विश्वासघात पूर्वक धोखे से जहर दे दिया था। यह वही दिन था, जिस दिन महर्षि ने अपने नश्वर शरीर का परित्याग किया था। उनकी इसी स्मृति में उनके अनुयायी दीप जलाकर दीपावली मनाते हैं।
जब राम ने लंका पर चढ़ाई की और रावण का वध किया, तब रावण के मरने के उपरांत लंका पर विजय पताका लहराकर राम अयोध्या लौटे। तब अयोध्या वासियों ने उनके मंगल आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया। दीपों की जगमगाहट से नगर को आलोकित कर दिया। कहते हैं तभी से यह प्रथा प्रचलित है इसलिए लोग दीप जलाकर दीपावली मनाते हैं।
नारायण श्री कृष्ण जब नरकासुर का वध करके वापस द्वारिका लौटे, तब उनके आगमन पर महारानी सत्यभामा ने दीप प्रज्वलित करके उनकी आरती उतारी और नगर वासियों ने खुशी से घर-घर में दीप जलाए। तभी से दीपावली पर्व प्रारंभ हुआ, ऐसी अनुश्रुति है।
कहते हैं जब समुद्र मंथन हुआ, तब समुद्र से 14 रत्न निकले। समुद्र मंथन से अमृत भी निकला और ज़हर भी। अमृत को देवों ने पी लिया और वे अमर हो गए। अब बचा ज़हर। ज़हर कोई भी पीने को तैयार नहीं हुआ। तब कैलाशपति शंकर ने उसे पी लिया और नीलकंठ बन गए। ऐसी किंवदन्ती है कि कार्तिक बदी अमावस्या को धन की देवी लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी। इस लक्ष्मी प्राकट्य के आनंद में लोगों ने दीप जलाए और आज तक दीप जलते आ रहे हैं।
कहा जाता है कि गुरु शंकराचार्य का जब मरण हुआ तब उनके पार्थिव शरीर को चिता पर रखा गया परंतु उनके शरीर को कार्तिक बदी अमावस्या के दिन ही अग्नि को समर्पित करने का निर्णय लिया गया। पर हुआ कुछ और ही। उनके शरीर में अमावस्या के दिन पुनः प्राण वायु आ गई। इन्हीं सब कारणों से कार्तिक अमावस्या को वैदिक परंपरा में दिवाली के रूप में मनाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी दिवाली का पर्व मनाना सर्वसम्मत है, क्योंकि वर्षा के कारण घरों में सीलन उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण नाना प्रकार के जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए वर्षा के बाद घरों की सफाई की जाती है, जिससे उत्पन्न कीटाणु नष्ट हो जाएं। जलते हुए दीपक के प्रभाव से चारों ओर नयापन आ जाता है। विज्ञान भी इसे स्वच्छता और पावनता का दिन मानता है।
जैन मान्यता अनुसार यह भगवान महावीर के परिनिर्वाण के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, क्योंकि प्रभु महावीर के निर्वाण के बाद धरती दिव्य ज्योति के अभाव के कारण अंधकार से व्याप्त हो गई थी। इसी अंधकार को तिरोहित करने के लिए देवों ने रत्नों के प्रकाश के द्वारा और नर-नारियों ने दीपों के द्वारा इस अंधकार को भगाने का, नष्ट करने का प्रयास किया था और इसी दिन गौतम स्वामी को केवलज्ञान की दिव्य ज्योति प्राप्त हुई थी। इन्हीं दो कारणों से जैन मतावलंबी दीपावली पर्व मनाते हैं।
दीपावली का यह पर्व दुनिया के लिए भले ही आमोद-प्रमोद का दिन हो, हर्षोल्लास का दिन हो, किंतु आध्यात्मिक दृष्टि से यह बंधन मुक्ति का दिन है। यह मुक्ति भले ही किसी भी चीज से मिली हो, चाहे गर्भ से, कारावास से या वनवास से, पराधीनता से, भय से, गंदगी से या फिर कर्म से मुक्ति मिली हो। पर मुक्ति तो मिली है।
इसलिए मुख्यतः यह बंधन-मुक्ति का पर्व है। आज भी देश में इन्हीं सब कारणों से लोग दीपक जलाकर दिवाली मनाते हैं। दीप जलाने के कारण इसे ज्योति पर्व भी कहते हैं।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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