सिद्धों का गुणगान

सिद्धों का गुणगान

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

हे प्यारी-प्यारी भव्य आत्माओं! हम सभी सिद्धों का गुणगान करने बैठे हैं। जैसे नदी एक है और उसकी धाराएं अनेक हैं, इसी तरह सिद्ध एक है और उनके गुण अनंत हैं।

आचार्य समंतभद्र स्वामी कहते हैं कि संसार में अनन्त गुण वालों की कद्र होती है। सिद्ध परमेष्ठी कैसे बने? जिसने संसार भ्रमण में कारण बनने वाले अष्ट कर्म दहन कर दिए, वे सिद्ध परमात्मा बन गए। जैसे-जैसे वह एक-एक कर्म को नष्ट करते हैं, वैसे-वैसे वे अनंत गुणों को धारण करते चले जाते हैं। ऊपर की ओर बढ़ते जाते हैं।

हम प्रतिदिन पूजा में पढ़ते हैं - ‘अष्ट कर्म दहनाय अर्घ्यं निर्वपामिति स्वाहा’

वे अष्ट कर्म हैं - मोहनीय, ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, अंतराय, आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय।

सिद्धों के गुण

सिद्ध बनने के लिए उन्होंने महान तपस्या करके

मोहनीय कर्म के क्षय से सम्यकत्व गुण,

ज्ञानावरणी कर्म के क्षय से अनंत ज्ञान गुण,

दर्शनावरणी कर्म के क्षय से अनंत दर्शन गुण,

अंतराय कर्म के क्षय से अनंत वीर्य गुण,

आयु कर्म के क्षय से अवगाहन गुण,

नाम कर्म के क्षय से सूक्ष्मत्व गुण,

गोत्र कर्म के क्षय से अगुरुलघु गुण

और वेदनीय कर्म के क्षय से अव्याबाध गुण प्राप्त किए।

आत्मा में अनंत शक्ति होती है। जैसे सूर्य में सारे संसार को प्रकाशित करने की शक्ति होती है लेकिन मेघ सूर्य की किरणों को कुछ समय के लिए ढक लेते हैं, ऐसे ही कर्म रूपी मेघों ने आत्मा को ढक लिया है। परन्तु हमारी आत्मा तात्कालिक शुद्ध है। जिस प्रकार कीचड़ में हीरा पड़ा हो, तो वह हीरा कीचड़ नहीं बन जाता और कीचड़ हीरा नहीं बन जाता।

आत्मा तो शुद्ध है और शुद्ध ही रहेगी। सत्संग अर्थात् संतों का संग एक प्रकार का धोबी घाट होता है, जहाँ आत्मा के कर्म रूपी मैल को धोया जाता है। संत धोबी के समान हैं, जहाँ आप अपनी आत्मा का मैल धोने आते हैं। जैसे धोबी कपड़ों को उठा-उठा कर पटकते हैं, वैसे ही संत आपको नियम-संयम की साबुन लगा कर, सम्यग्दर्शन का पानी लगाकर तपस्या की ओर अग्रसर करते हैं। उसमें हो सकता है कि आपको कुछ कष्ट का भी अनुभव हो, पर इसके बिना कर्मों का मैल निकलने वाला नहीं।

सम्यक दर्शन पाने के लिए, जैसे कपड़ों को पानी से धोया जाता है उसी प्रकार आत्मा के मैल को उपदेशों के द्वारा धोया जाता है। यों तो सिद्ध अनन्त गुणों के धारी हैं, पर सिद्धों के उपरोक्त 8 मूलगुण हैं। जो इन गुणों से सहित हैं, ऐसे सिद्ध प्रभु को हमारा नमस्कार है। हम संसार की विभूति पाने के लिए नहीं, अपितु आत्म-विभूति के लिए सिद्धों का गुणगान करते हैं और उन्हें नमस्कार करते हैं।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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