सामायिक
सामायिक
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
हे आत्मन्! सामायिक क्या है? क्या आँखें बंद करके एकांत स्थान पर पद्मासन लगाकर बैठने को सामायिक कहते हैं?
हे चेतन आत्मन्! यह सामायिक सम्यक् नहीं है। सामायिक का अर्थ है हृदय में साम्यभाव, समता रूप परिणाम होना, लेकिन आत्मन्! तूने क्या किया? बस! एक समय निश्चित किया और सामायिक मुद्रा लेकर बैठ गया और मन में सोच लिया कि मैं तो प्रतिदिन सामायिक करता हूँ। केवल नेत्र बंद करने से अपनी आत्मा के ध्यान में लीन नहीं हुआ जा सकता।
नहीं, चेतन! नहीं....। आज सामायिक के समय स्वयं को पहचानो। इसका वास्तविक उद्देश्य क्या है?
सामायिक एक थर्मामीटर है, जिसके द्वारा हम अपने भावों के माध्यम से अपनी स्थिति का निर्धारण कर सकते हैं कि हम आध्यात्मिक मार्ग में कहाँ तक पहुँचे और मंज़िल अभी कितनी दूर है?
जैसे हम तन में संताप का अनुभव करते हैं, तो थर्मामीटर लगाकर पता लगाया जा सकता है कि शरीर का तापमान सामान्य से कितना अधिक है या कम है? तापमान सम अवस्था में है तो हम स्वस्थ हैं और कम या अधिक है तो इसे सम अवस्था में कैसे लाना है? वैसे ही सामायिक में बैठकर हम अपने भावों का परीक्षण करें कि हमारे भाव कितने सम हैं और कितने विषम? हमारे परिणाम किस दिशा की ओर जा रहे हैं।
आज तक मैं पर में रमण करता रहा। उसे ही अपना मानता रहा। बाह्य पूजा-पाठ में ही धर्म मानता रहा, आत्म कल्याण मानता रहा। पर ये सब तो माध्यम है निज को पहचानने के। कभी निजगृह में प्रवेश किया ही नहीं। सामायिक काल है स्वयं को जानने का, पहचानने का। लेकिन हे आत्मन्! तूने कभी निज की ओर दृष्टि डाली ही नहीं। सामायिक के 48 मिनट भी तू निज में स्थिर नहीं रह सका। 48 मिनट तो सामायिक का व्यावहारिक समय है, पर निश्चय रूप से तो तुझे 24 घंटे समता भाव में रहना है। यही सच्ची सामायिक है।
पर हे आत्मन्! क्या किया तूने? स्वभाव में न जाकर विभाव में चला गया। निज के भाव को जान ही नहीं पाया। सामायिक के समय में भी तू राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषाय भावों में ही विचरण करता रहा और निज चैतन्य आत्मा पर दृष्टि गई ही नहीं।
हाँ! यह तो धोखा हुआ न अपने आप से सामायिक के नाम पर!!!
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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