निंदा पर विजय प्राप्त करें
निंदा पर विजय प्राप्त करें
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
किसी व्यक्ति ने स्वामी जी से पूछा कि तमाम व्यक्ति आपकी निंदा करते हैं, उन्हें कैसे रोका जाए? स्वामी जी ने उत्तर दिया कि निंदा से संत तो क्या ईश्वर भी नहीं बच सके, फिर हमारी तो बात ही क्या है? यदि मनुष्य अपनी आत्मा को समझ सकता है तो उसे संसार की बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए। उपर्युक्त प्रसंग हमें निंदा के विषय में चिंता न करने की प्रेरणा देता है।
आज समाज में कर्त्ता कम हैं और निंदक अधिक हैं। ये निंदक हमारा मनोबल क्षीण करना चाहते हैं। हमारे कार्य को सिद्धि तक पहुंचते देखना उन्हें खटकता है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि कोई कार्य प्रारम्भ करने से पहले भीतर से निर्भय बना जाए। उपहास की चिंता न करो। निंदा पर ध्यान न दो, क्योंकि ये ऐसे कारक हैं जो हमारी उन्नति में बाधा उत्पन्न करते हैं।
सब दूसरे की अवनति में प्रसन्नता का अनुभव करने लगे हैं। यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। इसे बदलना होगा। निंदा से कोई भी महापुरुष नहीं बच पाया। उनके परलोकगमन के कई वर्षों बाद तक भी विरोधी उनकी निंदा करते रहते हैं। परंतु यदि वे महापुरुष निंदा से घबराते, तो क्या वे महान कार्य कर पाते? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि उन्होंने निंदा को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने निंदा के भय को ही समाप्त कर दिया। जब भय समाप्त हो गया तो वह दुगुनी ऊर्जा के साथ श्रेष्ठ कार्य में संलग्न हो गए। हमारे अच्छे कार्य को हमारी आत्मा की स्वीकृति की भी आवश्यकता होती है।
यदि किसी कार्य को करने में हमारी आत्मा भयग्रस्त है, तो समझ लीजिए वह कार्य स्वहित और समाज के हित में ठीक नहीं। हमें उस कार्य को करने से पहले कई बार चिंतन करना चाहिए। ऐसे कार्यों को न करने में ही भलाई है और निंदकों के भय से श्रेष्ठ कार्य को त्याग देना भी बहुत बड़ी दुर्बलता और कायरता है। इस दुर्बलता को इच्छा शक्ति के बल पर परास्त किया जा सकता है। फिर जीवन में किसी सद् उद्देश्य को प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं आएगी।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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