नारी के तीन रूप
नारी के तीन रूप
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
नारी के तीन रूप होते हैं। नारी लक्ष्मी भी है, सरस्वती भी है और दुर्गा भी है। जब वह परिवार को संस्कार की दौलत देकर उसे संभालती है, तब वह लक्ष्मी के रूप में अपने दायित्व का निर्वाह करती है। नारी जब संतान को तत्वज्ञान देकर उसे शिक्षित करती है, तब उसका सरस्वती का रूप दिखलाई देता है। नारी सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों को ध्वस्त करने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य का परिचय देती है, तब वह दुर्गा बन जाती है।
तुम ही लक्ष्मी हो, तुम ही दुर्गा हो, तुम ही सरस्वती हो, लेकिन आज की नारियाँ अपने दायित्व को ही नहीं, अपनी शक्ति और अपने स्वाभिमान को भी भूल गई हैं।
याद करो अपने स्वाभिमान से लबरेज़ अतीत को, गौरवशाली इतिहास को, जो नारी ने रचा था। जो काम पुरुष नहीं कर पाए, वह नारियों ने कर दिखाया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी नारी ने ऐसा इतिहास रचा, जिसे पढ़कर नारी शक्ति का मस्तक ही गर्व से ऊँचा नहीं हुआ, अपितु पुरुषों के लिए भी अनुकरणीय हो गया। वह दिन याद करो, जब नारी ने रानी लक्ष्मीबाई के रूप में वीरता का प्रदर्शन किया और अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेकर उन्हें भागने पर मजबूर किया।
परन्तु आजकल नारी ही नारी से ज्यादा नफरत करती है। जितनी ईर्ष्या नारी के प्रति पुरुष नहीं करता उससे अधिक ईर्ष्या तो नारी ही नारी से करती है। तुम खुद इस बात की गवाही दे सकते हो कि आज हर माँ संतान के रूप में बेटा चाहती है और बेटी से नफरत करती है। वह भूल जाती है अपने आप पर गर्व करना कि हम भी एक माँ अर्थात् नारी की बेटी हैं। हम ही अपनी नारी जाति की दुश्मन बनती जा रही हैं। छोड़ो यह भावना और फिर से नारी शक्ति का परचम लहरा दो विश्व के आकाश में।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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