मानव धर्म
मानव धर्म
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
मनुष्य प्रकृति की सबसे अद्वितीय, विशिष्ट एवं अनमोल कृति है। प्रकृति ने हम इंसानों को तरह-तरह के संसाधनों से सुसज्जित किया है। यद्यपि प्रकृति ने सिर्फ हमें ही नहीं, अपितु अन्य जीव जंतुओं को भी बनाया है, किंतु उसने अन्य जीवों से थोड़ा-सा अधिक महत्व मानव जाति को दिया है। उसने हमें चिंतनशील, कल्पनाशील और विकसित मस्तिष्क दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि इस देश का नेतृत्व करने वाला आम जनता से अधिक संवेदनशील एवं निर्णयवान होता है ताकि वह अपनी जनता की रक्षा एवं सेवा कर सके।
इस प्रकार प्रकृति ने भी इस सृष्टि के संरक्षक के रूप में हम मानवों को बनाया है। इसी कारण मानव जाति को उसने चिंतनशीलता और कल्पना करने की शक्ति दी है। हमें चेतनापूर्ण बनाया है ताकि हम अन्य समस्त असहाय जीवों की रक्षा एवं सेवा कर सकें। आज हमारी मानव जाति के समक्ष अपना मानव धर्म या प्राकृतिक धर्म निभाने का समय आ गया है। वर्तमान में चाहे हम जिस भी धर्म में आस्था रखते हों, उसी कड़ी में मानव धर्म को अवश्य समावेशित करें। अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा-सा समय और थोड़ा-सा धन जन कल्याणकारी और प्रकृति कल्याणकारी गतिविधियों में व्यय करें। यह मानव धर्म की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।
इस विचार को एकाएक तो नहीं लेकिन हम सब मिलकर धीरे-धीरे प्रत्येक जनमानस तक पहुंचा सकते हैं। इस प्रकार हम एक धार्मिक समाज, धार्मिक परिवार, धार्मिक देश और धार्मिक विश्व बनाने में अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं और इस प्रकार प्रकृति की उचित आराधना और पूजा कर सकते हैं। मानव धर्म को जन-जन में भरकर पुनः इस प्रकृति के प्रिय बन सकते हैं। यह तो आप जानते ही हैं कि प्रकृति के रुष्ट होने पर ही विश्व में भयंकर महामारी, युद्ध व भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं।
तो आइए! संकल्प करें और एक प्रकृतिधर्मी विश्व समुदाय का निर्माण करने का प्रयास करें, जिससे सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त हों, सभी मंगल घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को दुःख का भागी न बनना पड़े।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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