ज्ञानी और अज्ञानी

ज्ञानी और अज्ञानी

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

कबीर रास्ते पर चला आ रहा था अपनी पत्नी और अपने बालक कमाल के साथ। कमाल ने पिता की आँखों में आंसू देखे। कमाल की अम्मा ने कहा - देखो! तुम्हारे बाबा की आँखों में आंसू आ गए हैं। बालक कहता है - मैं तो देख रहा हूं लेकिन मुझे हंसी आ रही है।

यही तो फर्क है ज्ञानी और अज्ञानी में! क्या कारण है कि चक्की गेहूं पीस रही है और कबीर की आँखों में आंसू आ गए हैं।

कबीर कहते हैं -

चलती चाकी देखकर, दिया कबीरा रोय।

दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।।

बस! संसार में यही दो पाटें हैं - राग और द्वेष के। उनके बीच में फंस कर मनुष्य भव-भ्रमण करता हुआ पिस रहा है और हर जन्म में रो रहा है। लेकिन कमाल कहता है -

चलती चकिया देखि के, हंसा कमाल ठठाय।

कीले सहारे जो रहा, ताहि काल ना खाए।।

जो दाना चलती हुई चक्की में भी कीले के सहारे लगा रहता है, उसका बाल भी बांका नहीं होता। जो दाना कील के बीच में फंस जाता है, वह साबुत बच जाता है। इसी प्रकार राग-द्वेष रूपी चक्की में संयम का सहारा लेने से वह उसके दो पाटों के बीच में नहीं फंस सकता। यह भोग ही संसार में फंसाने का कारण है। भोगी को क्या पता कि त्याग क्या चीज है?

ध्यान रखो, जब तक शरीर के प्रति राग-द्वेष होते हैं, तब तक क्रोध आता है और शरीर के साथ-साथ आत्मा की शक्ति भी क्षीण होने लगती है।

आत्मा की शक्ति हर व्यक्ति के पास है। बस! उसे उजागर करना है। हम जितना शरीर से ममत्व रखते हैं, उतना ही मन में दर्द होता है और हमें उतनी ही पीड़ा सहन करनी पड़ती है। भेद विज्ञान की दृष्टि से यदि जान लिया जाए कि शरीर अलग है और आत्मा अलग है, तो आत्मा को कष्ट नहीं होता। जैसे गीले नारियल में चोट मारो तो उसके अंदर का पानी भी हिलने लगता है। इसी प्रकार यदि हम शरीर व आत्मा को एक मानते हैं, तो दुःख आने पर हमारे शरीर को भी कष्ट होता है और आत्मा को भी कष्ट होता है।

जो आदमी भोगों से विरक्त होकर रहता है, उसका शरीर सूखे नारियल की तरह हो जाता है। सूखे नारियल पर चोट मारने से उसके अन्दर विराजमान गोले को कोई फर्क नहीं पड़ता।

भरत चक्रवर्ती अपने भाई बाहुबली के साथ हुए युद्ध के बाद जब महल में वापस आता है तो वह उदास था।

‘माँ! मैं जीत कर भी हार गया और बाहुबली हार कर भी जीत गया। मैं विजयी हुआ हूँ तो भुजबल से और बाहुबली अपने पुण्यबल से जीत गया। वह जीत कर भोगों को प्राप्त करने के बाद भी संसार को छोड़कर जंगल में चला गया। वही असली विजेता है।’

यही अन्तर है ज्ञानी और अज्ञानी में!!

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता