एक अम्मा जो बचपन में ही मर गई

एक अम्मा जो बचपन में ही मर गई

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

तीन दोस्त आपस में बात कर रहे थे। एक ने कहा मेरे पिताजी 100 साल की आयु में मर गए, तभी दूसरा बोला - अरे! मेरे पिताजी तो 150 साल की आयु में मरे। तभी तीसरा बोला कि मेरी अम्मा तो बचपन में ही मर गई।

अब आपको वास्तविक घटना बताते हैं। एक महिला का विवाह हुआ और एक बार घर में चौका लगाया गया। एक मुनिराज का आहार हुआ। आहार के बाद बहू ने उनसे पूछा - महाराज! आप इतनी जल्दी कैसे आ गए?

महाराज ने उसका उत्तर देने के स्थान पर बहू से पूछा कि बेटी! आपका जन्म कब हुआ? वह बोली कि महाराज! अभी 2 साल हुए हैं।

महाराज ने पूछा - और आपकी सासू मां का जन्म कब हुआ? उसने उनकी आयु 6 माह बताई।

महाराज ने फिर पूछा - आपके पतिदेव का जन्म कब हुआ? उसने कहा - अभी 10-15 दिन ही हुए हैं।

और आपके ससुर जी का जन्म कब हुआ?

उसने कहा - उनका जन्म अभी हुआ ही नहीं।

महाराज आहार के पश्चात अपनी तपस्या स्थली अर्थात् वन की ओर गमन कर गए।

वहीं पर ससुर जी पलंग पर बैठे थे। उन्होंने जैसे ही सुना उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह बोले - यह कैसी बहू है? महाराज को कैसे जवाब दे रही है? मैंने सुना है एक बुढ़िया थी और वह बचपन में मर गई। ऐसा कैसे हो सकता है? चलो! महाराज से ही पूछते हैं।

ससुर बहू को लेकर जंगल में पहुँचा, जहां महाराज श्री बैठे थे। ससुर ने महाराज से प्रश्न किया कि हे महाराज! आप क्षमा कर दें। बहू ने आपसे पूछा था कि आप इतनी जल्दी कैसे आ गए? तो इसमें क्या रहस्य था। तब महाराज ने बताया कि समय का कोई भरोसा नहीं है और मौत का भी कोई भरोसा नहीं है कि कब आ जाए? जब से धर्म करना प्रारंभ कर दो, तभी से जन्म सार्थक मानना चाहिए। इसलिए मैं जल्दी ही दीक्षा लेकर धर्म के पथ पर चल पड़ा। वत्स! सिर्फ मां के पेट से जन्म लेना ही जन्म नहीं है। असली जन्म तब होता है जब दीक्षा ली जाती है। संत का दो बार जन्म होता है। एक बार मां की कोख से और एक बार गुरु की दीक्षा से। बाकी सब धर्म की क्रियाएँ हैं। पूजा पाठ आदि करना - यह धर्म की अभिव्यक्ति है। लेकिन उसकी अनुभूति अंदर से होती है। बिना साधन के साध्य की सिद्धि नहीं होती। इस दुनिया में धर्म के बिना मानव का जन्म नहीं होता। संप्रदाय अलग-अलग हो सकते हैं, परंतु सुख तो केवल आत्मा की शांति में ही मिलता है।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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