भूल सुधार
भूल सुधार
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रुपये व्यापार के लिए दिए। उसका व्यापार चल गया लेकिन उसने वे रुपए अपने ससुर जी को नहीं लौटाए। आखिर दोनों में झगड़ा हो गया और झगड़ा इस सीमा तक बढ़ा कि दोनों का एक दूसरे के साथ बोलना बंद हो गया। उन्होंने एक दूसरे की निंदा करना प्रारंभ कर दिया।
जब देखो तब ससुर दामाद की निंदा किया करता था। इस कारण उसकी साधना पर प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हो गया। वह हर समय साधना के समय, ध्यान के समय अपने दामाद के प्रति अशुभ चिंतन करने लगा। इस कारण उसके व्यापार आदि पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ?
इस समय वह एक संत मुनि के पास गया समाधान के लिए। संत ने कहा - बेटा! चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा। तुम दामाद के पास जाना और कहना कि बेटा! पुरानी बात को भूल जाओ और मुझे क्षमा कर दो। गलती मेरी ही है जो मैं तुमसे पैसे वापिस पाने की उम्मीद लगा कर बैठ गया।
साधक ने संत ने कहा कि संत जी! पैसे भी मैंने ही दिए और क्षमा भी मैं ही माँगू, ऐसा कैसे हो सकता है?
संत जी ने उत्तर दिया कि परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की कुछ न कुछ गलती न हो, चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो और दूसरे पक्ष की भूल 99 प्रतिशत हो। पर भूल तो दोनों तरफ से होती है। यदि तुम अपनी साधना का मूल्य गंवाना नहीं चाहते, तो तुम्हें ही पहल करनी पड़ेगी। साधना के सामने उस नश्वर धन का कोई मूल्य नहीं है। धन तो यहीं पर छूट जाने वाला है और साधना का फल अगले भव को सुधारने वाला होगा।
साधक संत की बात मानकर अपने दामाद के पास क्षमा माँगने पहुँच गया। उनका बड़प्पन देख कर दामाद को भी अपनी ग़लती का अहसास हुआ और अपनी भूल को सुधारने के लिए उसने उनका सारा धन ब्याज सहित चुका दिया।
यह था क्षमा माँगने का सुप्रभाव!!
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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