आहार दान
आहार दान
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
1. जिंदगी में दो काम कर के भूल जाना चाहिए और दो कामों को सदा याद रखना चाहिए। ये सूत्र आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए हैं।
2. दान करके और दूसरे पर उपकार करके भूल जाना चाहिए और मौत एवं भगवान इन दोनों को हमेशा याद रखना चाहिए।
3. आज का आदमी दान करता है तो छपा-छपा कर करता है जबकि पहले दान को छुपा-छुपा कर करते थे।
4. दान दिए बिना सोना नहीं और दान देकर रोना नहीं।
5. दान चार प्रकार का होता है - आहार दान, औषध दान, अभयदान और ज्ञान दान।
6. दान किसको दिया जाता है? सुपात्र को।
7. पात्र कितने प्रकार के होते हैं?
पात्र तीन प्रकार के होते हैं - (1) उत्तम (2) मध्य (3) जघन्य।
उत्तम - खेत में बीज बोने के समान।
मध्य - किनारे में या मेंढ पर बीज बोने के समान।
जघन्य - पक्की सड़क पर बीज बोने के समान।
जैसे पात्र को दान देंगे, वैसी ही हमारी विशुद्धि होगी और वैसा ही फल मिलेगा।
8. यदि कोई तुम्हारे नगर में त्यागी, व्रती या मुनिराज आ जाएं तो आहार जरूर देना चाहिए, क्योंकि आहार दान में चारों दान समाहित हो जाते हैं। (भरत चक्रवर्ती का उदाहरण)
9. आहार दान न देने के लिए बहाना मत बनाना, जैसे कि हाथ दर्द कर रहा था, इसलिए वह आहार नहीं दे पाया।
10. बेटे को माँ की चिंता हो या न हो, पर माँ को बेटे की चिंता अवश्य होती है। (उदाहरण धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह)
11. एक व्यक्ति बोला कि हम आहार देते तो नहीं हैं, लेकिन अनुमोदन कर लेते हैं। ध्यान रखना पुण्य क्रिया में कृत, कारित और अनुमोदना का अलग-अलग फल मिलता है, लेकिन पाप की क्रिया में कृत, कारित और अनुमोदना का एक समान फल मिलता है। पुण्य में समान फल तब मिलता है, जब आप देने के योग्य नहीं हैं।
12. पुण्य कार्य में कृत, कारित और अनुमोदना किसको करनी चाहिए?
जो करने योग्य है, वह कृत करें। जो वृद्ध हो गए हैं और करने योग्य नहीं हैं, वे कारित करें और जब तुम पलंग पर पड़े हैं, हिल-डुल भी नहीं सकते, तब अनुमोदना करनी चाहिए। जो नहीं देने के पात्र हैं, उन्हें अनुमोदना का फल अवश्य मिलता है।
आहार दान में चारों दान समाहित हो जाते हैं, लेकिन अर्थ दान अर्थात पैसे का दान आहार दान में नहीं दिया जाता। इसमें तो भावों की भूमिका है। कभी पैसे का दान नहीं दिया जाता। आहार दान तो अपने हाथ से ही दिया जाता है।
उदाहरण - तुम एक लाख रुपए दान में दो और किसी मुनि की अंजुलि में किशमिश का दान दे दो तो कौन सा दान बड़ा होगा?
आचार्य गुणभद्र ने आत्मानुशासन ग्रंथ में श्रावक के धर्म करने की क्रिया को गज स्नान के समान कहा है।
आचार्य कुंदकुंद देव ने श्रावक को कहा - दानम् पूजं मुक्खं।
तो दान और पूजा करके अपने मुख्य आवश्यक कर्म करके अपने कर्तव्य का पालन करो।
मैं बता रहा था कि दान देकर भूल जाना और उपकार करके भूल जाना चाहिए। लेकिन जिस पर उपकार किया जाए, उसे दूसरे के उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए।
उदाहरण - किसी ने भोंदूमल को नदी में डूबने से बचा लिया और वह बचाने वाला सब को बार-बार कहता था कि मैंने इसे डूबने से बचाया। हम तो कहते हैं कि उपकार करके भूल जाना चाहिए।
दो चीजों को सदा याद रखो। मैंने पहले बताया था कि अपनी मौत और भगवान को सदा याद रखो। आदमी बहुत बेईमान है। वह दूसरों को तो देखता है लेकिन अपने आप को कभी नहीं देखता। ध्यान रखना कोई भी वस्तु शाश्वत नहीं है। कोई दुनिया से चला गया है, कोई जा रहा है और कोई जाने की तैयारी कर रहा है।
यह भी याद रखना कि मौत भोगी को छोड़ती नहीं और योगी को कभी छेड़ती नहीं। जो मोक्ष का लक्ष्य बनाकर चलते हैं उन्हें मौत छेड़ती नहीं। जिनके पास बाहर सब कुछ था और अंदर कुछ नहीं था, उन्हें मौत लेकर चली गई और जिनके पास बाहर कुछ नहीं था और अंदर सब कुछ था, उन्हें मौत अभिवादन करके चली गई।
भगवान आदिनाथ 83 लाख पूर्व वर्ष तक भोगों में आसक्त रहे लेकिन जब नीलांजना की मौत के दर्शन किए तो वैराग्य धारण कर लिया।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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