स्नेह की दौलत

स्नेह की दौलत

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

स्नेह के बिना सुखी जीवन जीना बहुत मुश्किल है। आज आधुनिक युग का दौर है। बच्चों के लिए कंप्यूटर का युग है। माता-पिता बैलगाड़ी के युग के हो चुके हैं। आज का युवा जितनी दूर दृष्टि वाला है, उतने उसके माता-पिता नहीं हैं। वर्तमान में नौजवान पीढ़ी बुद्धि के अभाव से व्यथित नहीं, बल्कि बुद्धि की अधिकता के कारण उसके होने वाले दुरुपयोग से व्यथित है। आज की पीढ़ी महंगाई से नहीं, अत्यधिक लालसा और अहंकार से दुःखी है।

यह पीढ़ीगत संघर्ष माता-पिता के कारण उनकी स्वतंत्रता में बाधा आने से हो रहा है। सास बहू का स्वभाव बदलना चाहती है, लेकिन उसे पहले स्वयं को उनके अनुसार बदलना होगा। वर्तमान में कृतज्ञता का स्थान कृतघ्नता ने ले लिया है। माता-पिता की डांट-फटकार तो याद रहती है, लेकिन उसके कारण पर वैचारिक मंथन नहीं किया जाता। दुनिया की किसी भी मां से यदि कहा जाए कि तूने अपनी संतान के लिए जितना संघर्ष किया है, वह एक कागज़ पर लिख दे, तो वह कागज कोरा ही वापस कर देगी। उस कागज़ पर केवल मां के आँसुओं की कुछ बूंदे ही होंगी। वह कहेगी कि संतान के लिए तो वह बहुत कुछ करना चाहती थी, पर कर न सकी।

यह वास्तविकता है कि संपत्ति के बिना कुछ दिन रहा जा सकता है, पर स्नेह के बिना एक पल भी रहना मुश्किल है। परिवार में यदि आपस में प्रेम और स्नेह है तो संपत्ति के अभाव में दुःख के दिन भी पलक झपकते ही कट जाते हैं। अतः स्नेह की दौलत का मूल्य समझो, भौतिक संपत्ति का नहीं।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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