बंधन

बंधन

(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)

इस संसार में किसी जीव को बंधन स्वीकार नहीं है। बंधन में उसका दम घुटता है। हर प्राणी को स्वतंत्रता चाहिए। कोई भी बंधन पसंद नहीं करता।

पति-पत्नी यद्यपि एक-दूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंधते हैं, लेकिन अपने व्यक्तिगत जीवन में वे बंधन पसंद नहीं करते। उन्हें अपने जीवन में निजी स्वतंत्रता चाहिए। यदि यह स्वतंत्रता न मिले, तो शादी का प्रेम-फूल जल्दी ही मुरझा जाता है। पत्नी चाहती है कि पति मेरे अनुसार चले और पत्नी चाहती है कि मेरी भावनाओं का भी सम्मान किया जाए। वे एक दूसरे के मालिक होना चाहते हैं, दास नहीं। विवाह के कुछ समय बाद एक कमरे में उनका दम घुटने लगता है। प्रेम सूली पर चढ़ने लगता है, प्रेम पीड़ा देने लगता है।

विवाह का बंधन क्यों पीड़ा देता है? क्योंकि समर्पण अहंकार में बदल गया। प्रेम अधिकार की भाषा बोलने लगा और आकांक्षा वर्चस्व के हाथों में कैद हो गई। सब स्वतंत्रता चाहते हैं। पशु-पक्षी, नर-नारी, देव-देवियां, नारकी सभी स्वतंत्रता चाहते हैं। तोते को पिंजरे में रख कर कितना भी खिलाओ, पर पिंजरा खुलते ही वह उड़ जाएगा। उसे भी बंधन प्रिय नहीं है। मौका मिलते ही वह खुले आसमान में उड़ने लगेगा।

आप अपने कमरे में स्वयं को बंद कर लेते हैं, रात भर आराम करते हैं, तो आपको बंधन का अनुभव नहीं होता क्योंकि आप वह बंधन खोलने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि कोई दूसरा उस कमरे को बंद कर जाए तो घबराकर दरवाज़ा खटखटाने लगते हैं। स्वयं का बंधन स्वयं को पसंद है, दूसरों के द्वारा दिया गया बंधन पसंद नहीं है और कोई आपके हाथ भी बांध दे तो आप तुरन्त घबरा जाएंगे क्योंकि आप स्वयं को आज़ाद नहीं करवा पा रहे।

आप संयुक्त परिवार में रहना पसंद नहीं करते, स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं।

संयुक्त परिवार में सुरक्षा है, सुविधा नहीं। एकल परिवार में सुविधा है मगर सुरक्षा नहीं।

संयुक्त परिवार में साधन हैं, समाधान नहीं। एकल परिवार में संपदा है, शांति नहीं।

आज स्वतंत्र रहने की भावना एक समस्या बन गई है। पति परिवार को छोड़कर भागना चाहता है, पत्नी ससुराल को छोड़कर भागना चाहती है। आज बेटा, बाप से अधिक अनुभवी बन गया है।

गुरुवर ने कहा कि आज प्रेम के नाम पर लोगों का दम घुटता है। प्रेम प्यार का मंदिर नहीं, पराधीनता का कारागृह बन गया है। प्रेम समर्पण नहीं, स्वार्थ बन गया है। प्यार अनुदान नहीं, आग्रह बन गया है। जब तक प्रेम में समर्पण के साथ आकांक्षा, अहंकार रहेगा, तब तक प्रेम का बंधन कारागार ही दिखाई देगा।

अतीत के सत्कार्य के कारण धन-वैभव, मान-सम्मान मिलता है। सुकृत्य के कारण घर में लक्ष्मी प्राप्त होती है। यदि हमने उस धन से दान, पुण्य, सेवा आदि नहीं की, तो वह पुण्य समाप्त हो जाएगा। गरीबों के प्रति हमने हमदर्दी दिखलाई, तो हमारा मन करुणावान बनेगा। घर के नौकरों के साथ वात्सल्य भाव रखा, तो नौकर भी तुम्हारा सम्मान करेंगे। फिर वे स्वयं को बंधन में नहीं मानेंगे बल्कि आपके हर कार्य में अपनी स्वीकार्यता देंगे।

घर के सदस्यों को प्रेम के बंधन में बांधो, तब वह घर कारागृह नहीं, प्रेमसदन बन जाएगा। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करो और धर्म-ध्यान में अपना जीवन व्यतीत करो।

ओऽम् शांति सर्व शांति!!

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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