अहंकार
अहंकार
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से)
अहंकार पेट्रोल से ज्यादा ज्वलनशील है। अहंकार को साधारण मत समझना। यह सर्प से ज्यादा भयंकर और पेट्रोल से ज्यादा ज्वलनशील है। किसी से संबंध तोड़ने और मिटाने में अहंकार सबसे आगे रहता है। अहंकार ने मैना सुंदरी के पिता के दिमाग में क्रोध की अग्नि भड़काई। राजा ने शादी का आयोजन तो करवाया, पर अपने अंहकार की पुष्टि के लिए मैना सुंदरी के धर्मज्ञान की प्रशंसा करने के स्थान पर उसकी निंदा की और उसका विवाह एक कोढ़ी राजा श्रीपाल से करवा दिया। अहम बहुत खतरनाक है।
अहंकार राई जैसे दुख को पहाड़ बना देता है, अमृत को जहर बना देता है। जिस घर के सदस्य अहंकारी होते हैं या जिस घर में पति अहंकार से युक्त होता है, उस घर में रहने वाले लोगों का जीवन वात्सल्य रहित हो जाता है। वह घर फूल-पत्तियों से रहित ठूंठ वृक्ष के समान है। अहंकारी का भवन रेत के ढेर के समान है, जो बाहर से तो जुड़ा हुआ दिखता है, मगर रेत के कणों की तरह अलग-अलग, बिखरा हुआ रहता है। अहंकार के वृक्ष पर कटुता के फूल-पत्ते जल्दी उग जाते हैं और जब मन में कटुता आती है, तब घर को उजड़ने में देर नहीं लगती।
सूर्य और चंद्रमा के आधार पर जातक का नाम और उसका जीवन निर्धारित होता है। परमात्मा सूर्य की भांति हैं और गुरु चंद्रमा की भांति हैं। चंद्रमा शीतल होता है और सूर्य गर्म होता है। सुख-दुःख का चंद्रमा पूर्णिमा बनने तक वृद्धि को प्राप्त हो जाता है। सुख की पूर्णिमा अमृत बरसाती है और दुःख की पूर्णिमा विष बरसाती है। पूर्णिमा का चंद्रमा औषधिपति है। वह वनस्पति में भी औषधि के गुण भरता है। चंद्रमा सतत परिवर्तनशील है और सूर्य स्थिर रहता है।
आदमी का स्वभाव भी चंद्रमा की भांति है। उसके भाव हर पल बदलते रहते हैं। परिणाम में उतार-चढ़ाव आता रहता है। ज्येष्ठ मास में धरती ऐसे सूख जाती है कि रेगिस्तान के समान बंजर हो जाती है और जब आसमान में बादल आ जाते हैं, पानी बरसता है तो धरती हरी-भरी हो जाती है। संत कहते हैं कि भाव तो महापुरुषों के भी बदलते हैं। मैना सुंदरी के भाग्य का बदलना कोई आश्चर्य की बात नहीं।
भाग्य तो राम का भी बदला। कहां राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी और कहां 14 वर्ष का वनवास मिल गया।
प्रतिकूलता में माता-पिता अपने सुख का त्याग करके संतान के जीवन में अनुकूलता का निर्माण करते हैं, लेकिन जब बेटा-बहू अहंकार के वशीभूत होकर अपने माता-पिता की उपेक्षा या अपमान करते हैं, उस समय वे बदनसीब अपने सीने पर आरी चलते हुए देखते रहते हैं। अपने आप को बेचकर उसने बेटे को पढ़ाया। खुद भूखा रहा लेकिन बेटे को खिलाया। जिसने अपने खून को दीये का तेल बनाकर जलाया और बेटे की पढ़ाई के लिए रोशनी की, आज वही मां-बाप थोड़े-से सम्मान के लिए तरसते रहते हैं, सिसकते रहते हैं। आज वे बेटे से अपमान के शब्द सुन रहे हैं। अहंकार में आकर पिता को कभी अपशब्द न कहें, अपमानित न करें।
किसी दुःखी के पास बैठकर, अपना दुःख बताकर वे हल्के हो जाते हैं और एक अमीर बेटा शराबियों की महफिल में पाप की नई-नई कलाएं सीखकर अपनी पापमय बुद्धि बना लेता है। शराब वह व्यसन है जो मरने तक साथ नहीं छोड़ता।
वास्तव में शरीर के लिए आहार जरूरी है और बिगड़ने के लिए विकार जरूरी है।
हर रात नई शादी है,
हर रात नई आज़ादी है।
तेरे-मेरे के चक्कर में,
शहजादे की बर्बादी है।।
ऐसा लगता है कि आजकल बच्चे अपनी संवेदनशीलता गवां बैठे हैं और धन के मद में उन्होंने माता-पिता के खिलाफ बोलने और विरोध करने का ही मिशन बना लिया है। अतः अहंकार को त्यागो ताकि तुम्हारा घर अहंकार की अग्नि में जलने से बच जाए।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
विनम्र निवेदन
यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।
धन्यवाद।
--
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
Comments
Post a Comment