सीधा सादा जीवन
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
सीधा सादा जीवन
सीधा सादा जीवन होने पर ही उत्तमता प्राप्त होती है।
महानुभावों! सीधा सादा जीवन होने पर ही जीवन में श्रेष्ठता आती है, तभी जीवन उत्तम बनता है। मृदुता पाने के लिए कठोरता को छोड़ना अनिवार्य है। मृदुता हमारी आत्मा का स्वभाव है, कठोरता नहीं। कठोरता बाहर से आने वाली तरंग के समान है जो पत्थर में होती है। मान-कर्म के उदय में मान-रूप कषाय उत्पन्न होता है, यह उसका स्वभाव है पर मान नहीं करना हमारी आत्मा का पुरुषार्थ है।
मुनि श्री ने कहा कि सम्मान की सामग्री मिलने पर, प्रशंसा की घड़ियां सन्मुख होने पर भी स्वयं को मान कषाय से दूर रखना महान पुरुषार्थ है। जैसे कली के रूप में रहने पर फूल की सुगंध वृक्ष में सुरक्षित रहती है लेकिन जब वही कली फूल बन कर खिल जाती है तो उसकी सुगंध वातावरण में फैल जाती है और वह फूल कुछ ही समय के बाद मुरझा जाता है। जो अपने मन को सुरक्षित रखता है वह अपनी साधना को देर तक बनाए रख सकता है और जो मन को खंडित कर देता है, उसकी साधना भी खंडित हो जाती है।
मुनि श्री ने कहा कि कषायों को घटाने के लिए उनका वास्तविक ज्ञान होना भी अति आवश्यक है। कषायों का क्षय करने के लिए जीवन में निर्मल-वृत्ति होना आवश्यक है। यह वृत्ति साधना के द्वारा ही प्राप्त होती है। जिससे आत्म-कल्याण व मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। साधुजन मान का पोषण करने में नहीं बल्कि कषायों को समाप्त करने में ही उद्यत रहते हैं।
मुनि श्री ने कहा कि अंधकार दो प्रकार का होता है - बहिरंग और अन्तरंग। बाहरी अंधकार को तो आसानी से दूर किया जा सकता है लेकिन भीतर के अंधकार को दूर करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। यह अंधकार दिखाई नहीं देता पर व्यक्ति इससे बहुत भयभीत रहता है क्योंकि मनुष्य आकांक्षाओं और वासना के अंधकार से ग्रस्त रहता है। ज्ञानीजन कहते हैं कि इस अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से दूर किया जा सकता है।
समस्त विकारों व तनावों को दूर करने का एकमात्र माध्यम है - धर्म। धर्म क्या है? भीतर के कषाय और राग-द्वेष रूपी कचरे को, विकारों को निकालना ही धर्म है। स्वयं को श्रेष्ठ बनाने की यही प्रक्रिया साधु-संतों द्वारा बताई गई है। मुनि श्री ने कहा कि हम धर्म को कल पर टालते रहते हैं जबकि उसे तो प्रथम स्थान पर रखने और अपनाने की आवश्यकता है। तथ्य की उपलब्धि विचारों से नहीं बल्कि निर्विचारी होने से होती है। जीवन में उत्तम बनना है तो धर्म को अपना मित्र बनाओ। सच्चे मित्र की पहचान सुविधाओं में नहीं अपितु प्रतिकूलताओं में ही होती है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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