णमोकार मंत्र की महिमा

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

णमोकार मंत्र की महिमा

महानुभावों! किसी गांव में एक सेठ रहता था। उसकी एक कन्या थी जिसका नाम श्रीमती था। बचपन में वह माता-पिता के साथ देव-दर्शन के लिए जाती थी। मुनियों व आर्यिकाओं के दर्शन करती और और उनसे व्रत आदि का नियम लेती। एक दिन उसने मुनिराज से णमोकार मंत्र के माहात्म्य के विषय में पूछा। मुनिराज ने बताया कि आगम के अनुसार सहस्रों पाप करके और सैंकड़ों जीवों की हिंसा करके मनुष्य ही नहीं, तिर्यंच भी इस मंत्र के जाप के प्रभाव से उच्च कुल व देव गति को प्राप्त करते हैं और स्वर्ग के सुख भोगते हैं। इस मंत्र के स्मरण से आत्मा पवित्र हो जाती है। मन में अपूर्व शक्ति का संचार होता है। संसार का कठिन से कठिन कार्य भी इस णमोकार मंत्र के स्मरण मात्र से सिद्ध हो जाता है।

जो श्रद्धा और विश्वासपूर्वक इस महामंत्र का चिंतन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। हर कार्यारम्भ में इस मंत्र का स्मरण कर लेने से वह कार्य निर्विघ्न पूरा होता है। मुनि श्री कहते हैं कि 5 पदों के 35 अक्षरों में एक विद्युत शक्ति निहित है। अनादि मूल मात्रिकाएं इस मंत्र में गर्भित हैं, अतएव जो व्यक्ति इस का पवित्रता पूर्वक ध्यान या उच्चारण करता है, उसके लौकिक और पारलौकिक सभी कार्य सिद्ध अर्थात् सफल हो जाते हैं। इसलिए प्रत्येक कार्य को आरंभ करने से पहले ध्यानपूर्वक शुद्ध मन से, वचन से और काय से नौ बार महामंत्र का जाप करना चाहिए। किसी को रोग या विघ्न आ जाए तथा कोई कार्य नहीं बन पा रहा हो तो शुद्ध मन से शुद्ध क्षेत्र में बैठ कर विधिपूर्वक 25 दिन या 15 दिन में णमोकार महामंत्र के सवा लाख जाप करे तो उसके सभी कार्य र्निवघ्न पूरे होते हैं।

इस प्रकार मुनिराज के मुख से इतना व्याख्यान सुन कर श्रीमती को इस मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा हो गई। वह प्रत्येक कार्य में मंत्र का उच्चारण करने लगी। प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल वह नियमित रूप से कुछ क्षणों तक इस मंत्र का उच्चारण करती थी। सोते-जागते, उठते-बैठते यह मंत्र उसकी ज़बान पर रहने लगा।

देखो! णमोकार मंत्र के प्रभाव से बंदर, बैल, कुत्ता आदि अनेक जीव दुर्गति में जाने से बच कर स्वर्ग में गए। मंत्र के प्रभाव से लकड़हारे के पास रखे हुए लकड़ी के कोयले रत्न बन गए। अंजन चोर भी सुगति को प्राप्त हुआ। विंध्य के राजा की पुत्री ने सुलोचना रानी को यह मंत्र दिया जिसके प्रभाव से वह देवी बनी और गंगा नदी में जाकर नदी में डूबते हुए गजराज को बचाया। ऐसी अनेक कथाएं हैं जो इस मंत्र के प्रभाव को दर्शाती हैं। इस मंत्र के प्रभाव से नारायण, चक्रवर्ती, स्वर्ग के देव भी इंद्रपद पाकर मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। जंगल में सिंह से सामना हो जाए तो इस महामंत्र को विधिपूर्वक पढ़ कर कुंडली मारकर बीच में बैठ जाने से सिंह हमें कोई हानि नहीं पहुँचा सकता।

यह मंत्र हमें संसार-समुद्र से पार करने वाला है। इस मंत्र की महिमा का जितना वर्णन किया जाए उतना ही कम है। जिसके हृदय में इस मंत्र के प्रति श्रद्धा के फलस्वरूप सिद्धि स्थापित हो जाती है, उस भव्य प्राणी के विषय में तो इतना ही जान लेना पर्याप्त है कि उसकी संसार भ्रमण की यात्रा अब समाप्ति के निकट है। एक धार्मिक व्यक्ति ही मंत्रजाप में रुचि रखता है। धर्म अनन्त सुख का मोक्ष फल पाने के लिए बीज के समान है। यदि किसान ज्ञानवान और श्रद्धालु है और उसे अच्छी फसल प्राप्त होने का पूरा विश्वास है तो वह ऋण लेकर भी अपने खेत में बीज अवश्य बोता है और बदले में गाड़ी भर कर अनाज अपने घर में लाता है। ऋण चुकाने के बाद भी वह मालामाल हो जाता है।

इसके विपरीत जो अज्ञानी है, वह अपने खेत में से कंकर-पत्थर निकाले बिना बंजर भूमि में भी अच्छे बीज डाल देता है और भरपूर मेहनत करने के बाद भी खाली हाथ रह जाता है। वह अपना ऋण चुकाने योग्य भी नहीं रहता। ज्ञानी, सुपात्र को दान देकर मोक्ष के मार्ग पर चल पड़ता है और अज्ञानी, कुपात्र को दान देकर कुगति में जाता है। इस प्रकार श्रीमती णमोकार महामंत्र के माहात्म्य को अपने मन में जानकर इसका जाप करने लगी।

जब श्रीमती विवाह योग्य हो गई तो उसके पिता ने उसके लिए जैन वर खोजना आरम्भ किया पर संयोग से वे अपनी तलाश में विफल रहे और उसका विवाह अन्य धर्मावलम्बी से तय कर दिया गया और उसकी इच्छा के प्रतिकूल एक विजातीय परिवार में उसे विवाह के बाद आना पड़ा। उस का पति डॉक्टर था और परिवार में उनके अलावा सास, ससुर व एक ननद थी। उसकी सास ने कहा कि अब तुम जैन धर्म को छोड़ कर गायत्री मंत्र का अनुष्ठान करो। यहाँ तुम्हारे णमोकार मंत्र का जाप नहीं चल सकता। हमारी परम्परा के अनुसार बटुक भैरव जी की पूजा करो।

श्रीमती ने कहा - माता जी, मैंने मुनि महाराज से नित्य देवदर्शन व रात्रि भोजन त्याग का नियम ले रखा है। नियम तोड़ना हितकर नहीं है। अतः मुझे जिन-मंदिर जाने की आज्ञा दें।

सास ने कहा - बेटी, हमारे घर में बटुक भैरव जी के अतिरिक्त अन्य किसी देवी-देवता की पूजा मान्य नहीं है और सारे परिवार के साथ बैठ कर रात्रि भोजन तो करना ही पड़ेगा। ध्यान से सुन लो। आज से तुम्हारा जिन मंदिर जाना बंद। गले में कंठी पहनो और तुलसीदल मुँह में डालो।

जब श्रीमती का पति घर आया तो श्रीमती ने रो-रो कर अपने मन की व्यथा सुनाई और कहा - मैं आपका सारा कहना मानूंगी पर मुझे जैन मंदिर जाने का और रात्रि भोजन त्याग के नियम का पालन करने दो। मैं घर के काम में कोई बाधा नहीं आने दूँगी।

डॉक्टर पति ने कहा - भले ही मैं इंग्लैंड रिटर्न हूँ पर अपनी माताजी के सामने एक शब्द भी नहीं कह सकता। यद्यपि मुझे उनका आदेश न्यायसंगत नहीं लग रहा पर उनके सामने बोलने की हिम्मत मुझमें नहीं है। मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है पर तुम ही उन्हें समझाने की कोशिश करो।

यह सुन कर श्रीमती ने अपनी सास से पुनः प्रार्थना की - माताजी, मैं आपकी हर आज्ञा का सिर झुका कर पालन करूंगी पर कृपया मेरा वचन भंग न होने दें। मैं भी तो आपकी बेटी के समान हूँ।

सास ने कहा - मैं इस घर में बटुक भैरव जी की पूजा के अतिरिक्त अन्य किसी की पूजा नहीं होने दूंगी। यदि मेरी बात नहीं मानोगी तो तुम इस घर में नहीं रह सकती। अपने पति को लेकर अन्यत्र चली जाओ। यहां रहना हो तो चाहे इच्छा हो या न हो, तुम्हें जिन दर्शन छोड़ना होगा और रात्रि में भोजन करना होगा।

सास के ऐसे वचन सुनकर श्रीमती को बहुत दुःख हुया और वह रुदन करती हुई णमोकार मंत्र का जाप करने लगी। अन्न-जल का त्याग कर दिया और पंचपरमष्ठी के चरणों में ध्यान लगाकर मौन व्रत धारण कर लिया।

सास ने भी हाथ मटकाते हुए कहा - देखती हूँ कि कितने दिन भूखी रहोगी? आखिर भोजन तो करना ही पड़ेगा। इस प्रकार श्रीमती को णमोकार का चिंतन करते हुए तीन दिन बीत गए।

एक रात सास को स्वप्न में दिखाई दिया कि बटुक भैरव जी साक्षात् दर्शन देकर कह रहे हैं कि तुम श्रीमती को क्यों कष्ट दे रही हो? मैं तुमको सावधान करने आया हूँ। यदि तुमने इसकी धर्म-साधना में बाधा डाली तो तुम्हें कुष्ठरोग हो जाएगा। जब सास सुबह सोकर उठी तो उसका सिर भारी हो रहा था। रात को देखे गए स्वप्न के बारे में सोचती तो उसका मन सिहर उठता लेकिन दूसरे ही क्षण सोचती कि स्वप्न तो झूठे ही होते हैं, उनसे डरने की क्या आवश्यकता है?

जो हम दिन भर में सोचते हैं वे ही बातें हमें स्वप्न में दिखाई देती हैं। पता नहीं यह बहू हमारे घर आई है या बला आई है। मैं अपने घर में अपने देवता की आराधना के सिवा अन्य किसी देवी देवता की पूजा नहीं होने दूंगी। अभी तो तीन दिन ही हुए हैं, जब पेट में चूहे दौड़ने लगेंगे तो स्वयं ही मेरी बात मानेगी। आज तक मेरे सामने किसी की नहीं चली तो इसकी क्या मजाल? ऐसा सोच कर सास ने बटुक भैरव की पूजा की और भोग चढ़ाया, फिर उसका प्रसाद बाँटा। श्रीमती अपनी मंत्र आराधना में लीन थी। भूख-प्यास को भूल कर णमोकार मंत्र के ध्यान में मग्न थी। मध्याह्न काल में आवाज़ सुनाई दी कि तुम अपनी परीक्षा में सफल हुई हो। संध्या के समय सास को एक ध्वनि सुनाई दी - ‘कुष्ठी भव!’

यह कैसी आवाज़ थी? कुष्ठी हो जाओ। तभी आश्चर्य हुआ और सास के सारे शरीर में कुष्ठ के लक्षण प्रकट होने लगे। सास के समस्त शरीर में पीड़ा होने लगी और वह दौड़ कर अपनी बहू के पास आई और कहने लगी - बेटी! अब मुझे ज्ञात हो गया है कि तुम्हारे धर्म में बहुत शक्ति है जो मेरे बटुक भैरव भी तुम्हारी मंत्र साधना की प्रशंसा कर रहे हैं। मुझे मेरी पाप बुद्धि का फल मिल गया है। मैं हाथ जोड़ कर तुमसे क्षमा मांगती हूँ। मुझे क्षमा करो अन्यथा मेरा जीवन दुःखमय हो जाएगा।

श्रीमती के मन में तो पहले से ही क्षमाभाव व्याप्त था। अगली सुबह श्रीमती स्नान करके जिन मंदिर में पूजा करने गई। वह गंधोदक लेकर घर आई और सास को कष्ट में देखकर उसने गंधोदक का जल णमोकार मंत्र पढ़ते हुए उस पर छिड़का। आश्चर्य कि तत्काल सास के शरीर से कुष्ठ के लक्षण समाप्त हो गए। णमोकार मंत्र के प्रभाव से सारे घर का कुंठित वातावरण खुशी में बदल गया। परिवार के सभी सदस्य जैन धर्म के अनुयायी बन गए।

हे भव्य जीवों! जो श्रद्धापूर्वक णमोकार मंत्र का जाप करता है, उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं। अतः अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रद्धापूर्वक णमोकार मंत्र का जाप करो।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता