जीवन जीने के लिए जागना ज़रूरी है
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
जीवन जीने के लिए जागना ज़रूरी है
तज्जयति परं ज्योति समं समसौरनन्तपयायैः,
दर्पणतव इव सकला प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र।
महानुभावों! जीना है तो जागना होगा। जागकर जीने वाला व्यक्ति ही जीवन का आनन्द उठा सकता है। जो होश में जीता है, वह होशियार होता है। धर्म होश में जीने की कला है और जो मूर्च्छा में जीते हैं, वे मूर्ख होते हैं। धर्म होश में जीने की कला सिखाता है। जो आँखें खोलकर जीते हैं, वे ही आत्मा से साक्षात्कार कर पाते हैं। परमात्मा को आँख से देखना है तो जीवन को आग से गुज़रना पड़ता है। तपश्चर्या की अग्नि से गुज़र कर ही आत्मा परमात्मा बनती है। जो तपता नहीं, वह पकता नहीं। तप पकने की प्रयोगशाला है। आम पकता है तपने के बाद और आत्मा परमात्मा बनती है तपस्या के बाद।
किसी के मन में यह प्रश्न आ सकता है कि आत्मा की शुद्धि के लिए शरीर को तपाने का क्या लाभ?
बन्धुओं! यदि दूध को तपाना है तो क्या करोगे? दूध को सीधे आग पर रख दोगे क्या? पहले उसे तपेली में डालना होगा और जब तपेली को आग पर रखेंगे तो पहले तपेली तपेगी फिर वह दूध को तपाएगी। यही तो भगवान महावीर कहते हैं कि यदि आत्मा को तपाकर शुद्ध करना है तो पहले पात्र अर्थात् शरीर को तपाना होगा। पात्र गर्म हुए बिना दूध कभी गर्म नहीं हो सकता। इसी प्रकार बाह्य तप के बिना अंतरंग तप की सिद्धि त्रिकाल में भी संभव नहीं है।
सत्य, साधना से प्रकट होता है, शास्त्रों के अध्ययन मात्र से नहीं। शास्त्रों में सत्य नहीं, केवल सत्य की दिशा का निर्देश है। शास्त्र तो मील का वह पत्थर है जो यह बताता है कि सतना यहाँ से 72 कि०मी० दूर है और खजुराहो यहाँ से 45 कि०मी० दूर है। यदि हम मील के पत्थर को ही मान लें कि यही सतना है और यही खजुराहो है तो हम कभी भी अपने निश्चित स्थान पर नहीं पहुँच सकते। मील का पत्थर केवल दिशा का संकेत करता है, मंज़िल को तो चलने वाले ही प्राप्त करते हैं। यही दृढ़ धारणा बना लेना।
भगवान महावीर कहते हैं कि कर्त्ता ही भोक्ता है। अतः यही समय है जागने का, चलना शुरू करो, मंज़िल अवश्य मिलेगी।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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