आत्मा का चिंतन क्या है
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
आत्मा का चिंतन क्या है
महानुभावों! आत्मा कोई मूर्त वस्तु नहीं है, कोई व्यक्ति नहीं है। वह अपने अन्दर छिपी हुई एक चिन्मय शक्ति है। आत्मा का लक्षण है - ज्ञान। ज्ञान की उपासना आत्मा की उपासना है। ज्ञानी की सेवा आत्मा की सेवा है। ज्ञान का प्रचार आत्मा की प्रभावना है। मुनि ने कहा कि आत्मा का लक्षण है - दर्शन। दर्शन अर्थात् शुद्ध विश्वास, अपनी शक्तियों का विश्वास, अपनी शुद्धता और पवित्रता का विश्वास। आप तुच्छ या शुद्र नहीं, महान हैं। आपके भीतर सम्पूर्ण ईश्वरीय शक्ति निहित है। उसका ज्ञान करो और इस पर विश्वास करो।
मेरे भीतर छिपा है भगवान, तू मनवा काहे बना नादान।
सिद्ध बुद्ध निर्मल निर्लेपी, अब इसको पहचान।।
रत्न छिपा माटी के भीतर, मूरख अब तो जान।
तेरे भीतर छिपा है भगवान, तू मनवा काहे बना नादान।।
आत्मा का लक्षण है - चारित्र, सम्पूर्ण वीतरागता। धर्मस्ति करणं चारित्रं। समस्त कर्मों से, कषायों से, विभावों से खाली हो जाना ही चारित्र है। अपने आप में विचरण करना ही चरण अर्थात् संयम है। इसलिए चारित्र को चरण कहा है। चरण ही व्यवहार में आचरण बन जाता है। आत्म-गुणों का आचरण करना ही चारित्र है। यही आत्मा का स्वभाव है। आपके शरीर के सबसे निकट आपके मन की परछाई के पीछे ही यह छिप कर बैठा है आत्मा। इसीलिए तो कहा है - आत्मा वाअरे .............. मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः।
अरे मानव! तू कहाँ भटक रहा है परमात्मा की खोज में। भगवान तो तेरे घट के भीतर ही विराजमान है।
घट का पट तू खोल रे मनवा, प्रभु है तेरे पास में।
वह नहीं माटी, काठ की मूरत, वह तो है विश्वास में।।
तो मैं कह रहा हूँ कि जो देवता आपके सबसे नज़दीक है, जो परमात्मा आपके भीतर छिपा हुआ है, उस परमात्मा की सेवा करना, उसे चारों तरफ़ से घेर कर अपने में बिठा लेना और उसी की रज में रम जाना, इसी का नाम है पर्युपासना। गुरु की या भगवान की पर्युपासना का मतलब क्या है? उनके प्रति तन, मन से, सम्पूर्ण अहोभाव से समर्पित होकर उनके अत्यन्त निकट हो जाना।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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