कषाय

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

कषाय

कषाय किसे कहते हैं?

मानव का सबसे बड़ा शत्रु कषाय है जो आत्मा को कसे अर्थात् दुःख दे उसे ‘कषाय’ कहते हैं। कषाय के चार भेद हैं -

1. क्रोध

2. मान

3. माया

4. लोभ

इनमें क्रोध और मान द्वेष रूप है तथा माया और लोभ राग रूप है।

क्रोध - गुस्सा करना क्रोध कहलाता है। क्रोध विचारों की एक ऐसी विकृति है, जिसके कारण व्यक्ति का विवेक समाप्त हो जाता है, भले बुरे की पहचान नहीं रहती। यदि कोई हितैषी या पूज्य पुरुष भी बीच में आए तो व्यक्ति उसे भी भला-बुरा कहने लगता है। यदि जिस पर क्रोध आ रहा है उस का बुरा न हो पाए तो स्वयं बहुत दुःखी होता है और अपने ही अंगों का घात करने लगता है। क्रोध के परिणामस्वरूप जीव को नरक गति की प्राप्ति होती है। जहाँ क्रोध है, वहाँ बहुत दुःख भोगना पड़ता है। असफलता मिलने पर या अपनी इच्छानुसार कार्य न होने पर या इसने मेरा बुरा किया ऐसा मानने पर मन में क्रोध पैदा होता है।

क्रोध से स्वयं की ही हानि होती है अतः हमें क्रोध नहीं करना चाहिए।

मान - घमंड करना मान कहलाता है। यह घमंड कुल, जाति, ताकत, शरीर, धन, प्रतिष्ठा, ज्ञान और तप, इन आठ बातों को लेकर किया जाता है। मान कषाय के कारण प्राणी अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा मानने लगता है। अन्य की निंदा करने लगता है और अपनी प्रशंसा करता है।

सफलता मिलने पर या अपनी प्रशंसा सुनने पर ज्ञान कषाय पैदा होता है। मान दुर्गति का कारण है। जैसे लंकापति रावण, जिसने समझ तो लिया था कि मुझे सीता जी को लौटा देना चाहिए परन्तु घमंड के कारण लौटा न सका। वह तो राम को जीतकर ही लौटाना चाहता था परन्तु परिणाम सर्वनाश का हुआ।

माया - छलकपट को माया कहते हैं। माया कषाय के कारण मन में कुटिलता उत्पन्न हो जाती है। वह सोचता कुछ है, बोलता कुछ है और करता कुछ है। मायाचारी जीव सदा भय से आक्रांत रहता है, उसे कपट खुल जाने का भय सदा बना रहता है। मायाचारी का कोई विश्वास नहीं करता। मायाचारी मनुष्य मर कर पशु होते है। अतः छल कपट कभी नहीं करना चाहिए।

लोभ - लालसा, लालच, तृष्णा, चाह आदि को लोभ कहते हैं। संसार में लोभ को ‘पाप का बाप’ कहते हैं। लोभ में आकर मनुष्य न करने योग्य कार्य को भी करने लग जाता है। अनर्थ करने लग जाता है। अच्छी वस्तु में खोटी वस्तु मिलाकर बेचता है, कभी-कभी लालच में आकर अपना भी नाश करने लगता है।

जैसे एक बूढ़ा शेर हाथों में सोने का कड़ा लिए तालाब में खड़ा था। एक लालची ब्राह्मण सोने के कड़े के लालच में आ गया। आगे बढ़ा और मारा गया। अतः लोभ, लालच हमें कभी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों प्रकार के कषायों से जीव का घोर पतन होता है। अतः इससे दूर रहना चाहिए।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

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