करें क्रोध पर क्रोध
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
करें क्रोध पर क्रोध
क्रोध प्रत्ये तो वर्ते क्रोध स्वाभवता, मान प्रत्ये तो दीनपणा नुं मानजो।
माया प्रत्ये माया साभी भाव नी, लोभ प्रत्ये नाहीं लोभ समान जो।।
महानुभावों! क्रोध किस पर करना है? स्वयं पर या दूसरे पर? क्रोध तो करना ही है। यह तो हमारा स्वभाव बन चुका है। दूसरों पर क्रोध करते हैं तो पागलपन कहलाता है और स्वयं पर करते हैं तो बुद्धि का दीवालियापन माना जाता है।
अगर तुम्हें क्रोध करना ही है तो अपने क्रोध पर ही क्रोध करो। यदि तुम सोचते हो कि दूसरों पर क्रोध करके उनको नुकसान पहुँचा सकते हो तो यह सोच वैज्ञानिक नहीं है। इस संबंध में अभी तक सारा वैज्ञानिक अन्वेषण यही कहता है कि दूसरों पर क्रोध करके मनुष्य केवल दूसरे को ही नहीं, स्वयं को भी हानि पहुँचाता है। प्रसन्न रहने से, मुस्कुराने से, हंसने से हमारी ऊर्जा बढ़ती है और क्रोध करने से ऊर्जा खर्च होती है।
क्रोध करते समय हम होश खो बैठते हैं क्योंकि होश में हों तो हम क्रोध कर ही नहीं सकते पर यदि उस समय हमारे अन्दर स्वयं का विश्लेषण करने का थोड़ा सा भी विवेक कायम है तो हम स्वयं ही जान जाएंगे कि हमने कितनी ऊर्जा व्यर्थ में गवां दी। हम इस सच्चाई से अवगत हो सकते हैं कि जो ऊर्जा हमने एक दिन भोजन करके 24 घंटे में अर्जित की थी वह एक मिनट में क्रोध करके नष्ट कर दी।
आप स्वयं देख सकते हैं कि क्रोध करने वाला व्यक्ति रात भर सो नहीं पाता और सुबह उठने पर अपने को थका हुआ पाता है जबकि रात भर की नींद हमारे अंदर अगले दिन का काम करने के लिए ऊर्जा भरती है और हम प्रसन्नतापूर्वक अपने काम में जुट जाते हैं। पर क्रोधी व्यक्ति कभी स्वयं को प्रफुल्लित अनुभव नहीं कर सकता। उनकी सारी ऊर्जा क्रोध करने में ही नष्ट हो जाती है। क्रोध समस्त ऊर्जा का अपव्यय कर देता है। लेकिन जो क्रोध पर नियंत्रण रखते हैं वे अपनी ऊर्जा का व्यय सकारात्मक दिशा में करते हैं और उसका पूरा लाभ प्राप्त करते हैं।
अतः क्रोध ही करना है तो क्रोध को ही दूर भगाने का प्रयास करो ताकि वह अपने पास ही न फटकने पाए।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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