सत्य
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
सत्य
सत्य बहुत मीठा होता है, पर मन की कटुता से वह कड़वा लगता है।
अवनितल गतानां कृत्रिमकृत्रिमाणां,
वनभवन गतानां दिप्यपैमाणिकानाम्।
इह मनुजकृतानां देवराजायिंतानां,
जिनवरनिलयाणां भावतोऽहं स्मरामि
दुनिया में सत्य से बढ़कर अन्य कोई मुक्तिदाता नहीं है। सत्य ‘साधना’ से जागृत होता है और ‘साधनों’ से मृत होता है। सत्य की सिर्फ चर्चा ही नहीं होनी चाहिए अपितु जीवन में उसका पालन भी होना चाहिए। झूठ सबसे पहने मन में पैदा होता है फिर मुख से प्रगट होता है। केवल मौन धारण कर लेने से कोई सत्यवादी नहीं हो जाता।
सत्यवादी का अर्थ है - मुख से भी सच्चा और मन से भी सच्चा, क्योंकि आदमी चाहे मुख से झूठ बोले या न बोले पर मन में तो सदैव झूठ में ही जीता है, झूठ की योजना बनाता रहता है। सत्य कभी कड़वा नहीं होता। सत्य तो सदैव मीठा ही होता है और यदि वह कड़वा है तो वह सत्य हो ही नहीं सकता।
यह तो तुम्हारे मन में ही कड़वाहट भरी हुई होती है जो सत्य को मीठा लगने ही नहीं देती। जैसे बुखार के मरीज़ को मीठा दूध भी पिलाओ तो उसे कड़वा ही लगेगा। दूध तो कड़वा नहीं है न! बुखार के कारण जिह्ना का स्वाद ही कड़वा हो गया है। सत्य तो मधुर ही नहीं अपितु मधुरतम होता है। सत्य से मधुर दुनिया में कुछ है ही नहीं। बस! अपने मन को मधुर बनाने की आवश्यकता है।
मुनि श्री कहते हैं कि आपस में लड़ाई किसी धर्म या सम्प्रदाय के कारण नहीं होती अपितु मिथ्याबुद्धि के कारण होती है। धर्म सदा मैत्री करना सिखाता है।
‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना’।
धर्म अमृत के समान है जो जीवन में अमृत की तरह बरसता रहता है। धर्म सत्य की राह दिखाता है। यदि धर्म को सही रूप में प्रचारित किया जाए तो वह अमृत तुल्य है अन्यथा अंध विश्वास से ग्रस्त लोग धर्म के नाम पर लोगों के मन में ज़हर भर देते हैं। धर्म एक सुखद आत्म-अनुभव का नाम है। धर्म लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने का नाम नहीं है।
धर्म आत्मा का संगीत है, आत्मा की आवाज़ है। यह वह धन है जो स्वयं अर्जित करना पड़ता है। धर्म रेडिमेड नहीं मिलता। रेडि का मतलब है - तैयार और मेड का मतलब है - पागल। तो रेडिमेड का मतलब हुआ - तैयार पागल। आचार्य श्री कहते हैं कि जिनका रेडिमेड में विश्वास है वे तैयार पागल हैं और धर्म पागलों की नहीं प्रज्ञा पुरुषों की सम्पत्ति है, परम पुरुषों की जागीर है। अब आपका समय हो चुका है। अंत में एक मुक्तक सुना कर विराम लेंगे -
”असंयमी का आज सम्मान हो रहा है,
धर्म का गुलशन वीरान हो रहा है।
तन के पिंजरे में कैद इस आत्मा को,
संयम के बिना भेद विज्ञान हो रहा है।“
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
बहत आछे🙏omshanti
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