परमात्मा के दर्शन

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

परमात्मा के दर्शन

महानुभावों! क्या आपने कभी परमात्मा के दर्शन किए हैं? 

चलो! आज आपको इब्राहीम आदम बलख के बारे में बताते हैं। वह एक सादगी प्रिय धर्मनिष्ठ बादशाह थे जो प्रतिपल, प्रतिक्षण परमात्मा के अन्वेषण में लगे रहते थे। उनके महल के द्वार प्रजा के लिए हर समय खुले रहते थे। उनके पास कोई भी व्यक्ति बिना किसी संकोच के पहुँच सकता था। किसी के लिए मनाही नहीं थी।

उनका महल एक पहाड़ी पर बना हुआ था। एक बार जब वे रात्रि में सो रहे थे तो उन्होंने महल में किसी के पैरों की आहट सुनी। वे चौंक कर उठ बैठे। उन्होंने अंधेरे में ही देखा कि एक मानव आकृति उनके पास आ रही है। 

इब्राहीम ने पूछा - ‘आप कौन हैं और इस प्रकार आपका आगमन क्यों हुआ?’ 

मानव आकृति ने कहा - ‘मैं आपका ही मित्र हूँ। मेरा ऊँट खो गया है। उसका अन्वेषण करने आया हूँ।’ 

इब्राहीम ने कहा - ‘मित्र! इतनी ऊँची पहाड़ी पर, इतने ऊँचे महल में आपका ऊँट कैसे आएगा? महल में ऊँट खोजना क्या पागलपन नहीं है?

मानव आकृति ने मुस्कुराते हुए कहा - ‘इब्राहीम! तुम्हें मेरा पागलपन तो ज्ञात हो गया! जैसे ऊँचे महल में ऊँट खोजना पागलपन है, वैसे ही ऊँचे महल में बैठ कर परमात्मा को खोजना क्या पागलपन नहीं है? क्या कभी तुमने इस पर चिंतन किया है?

इब्राहीम उस मानव आकृति का मुँह देखने के लिए जैसे ही उठा, वह आकृति अंधकार में विलीन हो गई। इब्राहीम रात भर करवटें बदलते रहे। वे शब्द उनके कर्ण कुंडलों में गूँजते रहे कि ऊँचे महल में बैठ कर माया और वैभव के इस साम्राज्य में लिप्त होकर परमात्मा के दर्शन नहीं किए जा सकते। 

प्रातःकाल होते ही वे राजमहल छोड़ कर घोड़े पर बैठ कर एकांत जंगल की ओर चल दिए। सारे राजसी वस्त्राभूषण उतार कर फकीरी का वेश धारण कर आध्यात्मिक साधना करने लगे। नौ वर्ष तक निरन्तर उसी स्थान पर जप-ध्यान की साधना की और विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि होने पर लोगों के आग्रह पर मक्का गए और जीवन के अंतिम क्षण उन्होंने वहीं पर व्यतीत किए।

उनका अभिमत था कि अमीरी व धन-दौलत में शैतान का निवास है तथा ग़रीबों व फकीरों में फरिश्ते का, जो उनको खुदा के दरबार में पहुँचाते हैं। जो माया से नाता तोड़ता है वही परमात्मा के दर्शन कर सकता है।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता